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________________ xiv शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास इसी क्रम में सम्माननीय विद्वान प्रो. जे. एन. पाल, प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रति नतमस्तक हूं जिन्होंने इस पुस्तक के सन्दर्भ में अपनी लेखनी चलाने की मेरी प्रार्थना स्वीकार की। राज्य संग्रहालय लखनऊ के सह निदेशक (सेवानिवृत्त) पितृ तुल्य श्री आई. पी. पाण्डेय के प्रति आभारी हूं जिन्होंने शोध सामग्री उपलब्ध कराई। आपका विद्वतापूर्ण परामर्श और पित्रवत स्नेह समान रूप से प्राप्त होता रहा है। ___ शोध कार्य की पूर्णाहूति करने में डॉ. बी. सी. रावत, प्रवक्ता, प्राचीन इतिहास, डॉ. शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय, लखनऊ का अमूल्य सहयोग रहा है। शोध-सामग्री एवं महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए हृदय से नमन करती हूं। आपने शोध-प्रबन्ध को पुस्तक का स्वरूप प्रदान करने की प्रेरणा प्रदान की और हरसम्भव सहयोग किया। __ अन्य विद्वान मनीषियों में मथुरा के सह-निदेशक डॉ. एस. पी. सिंह, स्व. डॉ. शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी, डॉ. शशिकान्त जैन, डॉ. हनुमान भाई, वाराणसी और डॉ. जगपाल सिंह भाई, नई दिल्ली आदि विद्वानों के प्रति में आभारी हूं, जिन्होंने शोध कार्य में विविध प्रकार के परामर्श एवं सहयोग प्रदान कर मुझे लाभान्वित किया। ___ मैं पूज्य पिताजी स्व. श्री रामकृपाल सिंह, पूज्य माता जी श्रीमती कालिका देवी, अग्रज डॉ. प्रणवीर प्रताप सिंह, सांख्यिकी अधिकारी, गोरखपुर वि. वि., अनुज प्रबल प्रताप सिंह, पत्रकार, अमर उजाला कानपुर और अग्रजा श्रीमती राजनीता सिंह, प्रधानाचार्य, बी. आई. डी. मेमोरियल स्कूल, महाराजगंज आप सभी को हृदय से नमन करती हूं। आप सभी के स्नेह, धैर्य, प्रेरणा एवं आत्मीय सहयोग से यह शोध कार्य अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सका। शोध कार्य के दौरान आप सभी ने मेरा उत्साहवर्धन किया और कदम-कदम पर शोध कार्य को शीघ्र पूर्ण करने के लिए मुझे आत्मिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से आत्मबल प्रदान किया।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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