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________________ शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला इस प्रकार मूर्तिकाल के क्षेत्र में शूरसेन जनपद में महत्वपूर्ण विकास दृष्टिगोचर होता है । 93 संदर्भ ग्रन्थ सूची 1. उपाध्ये, ए.एन.; जैन कला की आचारिक पृष्ठभूमि, जैनकला एवं स्थापत्य खण्ड-1, पृ. 43 2. समवायांग सूत्र, पृ. 77, औपपातिक सूत्र, 4, पृ. 186 3. दिव्यावदान, पृ. 58, 100, 391; ललित विस्तर, पृ. 156 4. रामायण, 1/9/ 5 महाभाष्य, 1 / 1 /57; भागवत पुराण, 10/45/36 5. कुमारस्वामी, ए. के.; एलीमेन्ट्स ऑव बुद्धिस्ट आइकनोग्राफी, पृ. 5 6. मित्रा, देबला; मथुरा व पूर्व भारत; जैनकला एवं स्थापत्य; भाग-1, अंक 6, 7, पृ. 51, 71, 74 7. मीत्तल, प्रभुदयाल, ब्रज की कलाओं का इतिहास, पृ. 67 8. तिलोयपणति, 4, 1210, वारांगचरित; 2, 7, 9,270 9. आशाधर; प्रतिष्ठासारोद्धार, 1.77 10. जिनसेन; आदिपुराण, सर्ग 12, श्लोक, 101, 19; हरिवंश पुराण, सर्ग 8, श्लोक 58.74 11. कल्पसूत्र, पृ. 10 12. त्रिवेणीप्रसाद; जैन प्रतिमा विधान, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग-4, किरण 1, पृ. 22 13. ओझा, गौरीशंकर; जैन मूर्तिकल का शिल्प वैभव, नवभारत टाइम्स, पृ. 6 14. राज्य संग्रहालय लखनऊ संख्या जे. 354; डी. एम. श्रीनिवासन, मथुरा-दि कल्चरल हेरिटेज, पृ. 335 15. शाह, यू.पी.; स्टडीज इन जैन आर्ट, पृ. 11; रस्तोगी, शैलेन्द्र कुमार; प्राचीनतम जैन कलारत्न, भगवान महावीर जयन्ति स्मारक भाग 2, पृ. 21, 23
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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