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शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला
इस प्रकार मूर्तिकाल के क्षेत्र में शूरसेन जनपद में महत्वपूर्ण विकास
दृष्टिगोचर होता है ।
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संदर्भ ग्रन्थ सूची
1. उपाध्ये, ए.एन.; जैन कला की आचारिक पृष्ठभूमि, जैनकला एवं स्थापत्य खण्ड-1, पृ. 43
2. समवायांग सूत्र, पृ. 77, औपपातिक सूत्र, 4, पृ. 186 3. दिव्यावदान, पृ. 58, 100, 391; ललित विस्तर, पृ. 156 4. रामायण, 1/9/ 5 महाभाष्य, 1 / 1 /57; भागवत पुराण, 10/45/36 5. कुमारस्वामी, ए. के.; एलीमेन्ट्स ऑव बुद्धिस्ट आइकनोग्राफी, पृ. 5 6. मित्रा, देबला; मथुरा व पूर्व भारत; जैनकला एवं स्थापत्य; भाग-1, अंक 6, 7, पृ. 51, 71, 74
7. मीत्तल, प्रभुदयाल, ब्रज की कलाओं का इतिहास, पृ. 67
8. तिलोयपणति, 4, 1210, वारांगचरित; 2, 7, 9,270
9.
आशाधर; प्रतिष्ठासारोद्धार, 1.77
10. जिनसेन; आदिपुराण, सर्ग 12, श्लोक, 101, 19; हरिवंश पुराण, सर्ग
8, श्लोक 58.74
11. कल्पसूत्र, पृ. 10
12. त्रिवेणीप्रसाद; जैन प्रतिमा विधान, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग-4, किरण 1, पृ. 22
13. ओझा, गौरीशंकर; जैन मूर्तिकल का शिल्प वैभव, नवभारत टाइम्स, पृ. 6 14. राज्य संग्रहालय लखनऊ संख्या जे. 354; डी. एम. श्रीनिवासन, मथुरा-दि कल्चरल हेरिटेज, पृ. 335
15. शाह, यू.पी.; स्टडीज इन जैन आर्ट, पृ. 11; रस्तोगी, शैलेन्द्र कुमार; प्राचीनतम जैन कलारत्न, भगवान महावीर जयन्ति स्मारक भाग 2, पृ.
21, 23