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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास स्वास्तिक का महत्व वैदिक, जैन एवं बौद्ध तीनों प्रमुख धर्मों में है। स्वास्तिक का अंकन तीर्थंकर एवं भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं के तलुए एवं हथेलियों पर किया गया है। पवित्रता के रूप में स्वास्तिक का महत्व व्यापक है । 140 92 वर्णित क्षेत्र से प्राप्त जैन आयागपट्ट पर स्वास्तिक सहित अन्य मंगल प्रतीकों का सर्वोत्कृष्ट अंकन है । एक आयागपट्ट के केन्द्र में एक छोटा वृत्त है, जिसमें जैन तीर्थंकर प्रतिमा अंकित हैं । " स्वास्तिको के त्रिदल का छोर अमरावती तथा नागार्जुनकोण्डा की कलाओं में दृष्टव्य है। 2 आयागपट्टों के अतिरिक्त मथुरा से प्राप्त द्वितीय शताब्दी के लाल बलुए पत्थर के एक छत्र पर भी अष्टमंगल उत्कीर्ण किए गये हैं, जो इस प्रकार हैं- नन्दिपद, मत्स्ययुग्म, स्वास्तिक, पुष्पदान, पूर्णघट, रत्न पात्र, श्रीवत्स एवं शंखनिधि | 143 जैन धर्म में प्रतीक के रूप में श्रीवत्स चिन्ह का विशेष महत्व है । वर्णित क्षेत्र के प्राचीन जैन स्तूप के वेदिका स्तम्भों, आयागपट्टों तथा तीर्थकर भगवान की प्रतिमाओं पर अंकन प्राप्त होता है । 144 जर्मन पुरातत्वविद् डॉ. हर्टेल को वर्णित क्षेत्र के सोंख नामक स्थान से पकी मिट्टी का एक पंचागुल प्राप्त हुआ है जिस पर बायें से क्रमशः श्रीवत्स, नन्दिपद तथा स्वास्तिक प्रतीकों को उत्कीर्ण किया गया है। 145 बौद्ध धर्म में भी श्रीवत्स को महापुरुषों का प्रमुख लक्षण माना गया है । 146 इसी प्रकार खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में भी इसका विशिष्ट प्रयोग किया गया है। अभिलेख के प्रारम्भ में बायीं ओर प्रथम से लेकर पांचवीं पंक्तियों के सीध में ऊपर श्रीवत्स और उसके नीचे स्वास्तिक का एक - एक चिन्ह उत्कीर्ण हैं । 147 कंकाली टीले के एक आयागपट्ट पर त्रिरत्न, कलश, चक्र, पुष्पमाल, पवित्र पुस्तक, नद्यावर्त, श्रीवत्स, मत्स्य - गुग्म और भद्रासन का अंकन किया गया है । 148
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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