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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास के परामर्श पर दमित की पुत्री ओखारिका ने 162 ई. में स्थापित कराई थी। ___ मथुरा से प्राप्त एक मस्तक एवं भुजा रहित प्रतिमा प्राप्त हुई है। चरण-चौकी के लेखानुसार दिन की वधु कुटुम्बिनी ने कोट्टियगण के पवहक कुल की मझम शाखा के सैनिक भट्टिबल की प्रेरणा से 168 ई. में प्रतिष्ठित कराया। यह वासुदेव का राज्यकाल था। __इसी प्रकार की चौसा से धातु की दो कायोत्सर्ग प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जो पटना संग्रहालय में है। इनके सिर पर तीन या पाँच लटें लटकती केश वल्लरिया सुशोभित हैं। भगवान ऋषभनाथ की एक कुषाणकालीन प्रतिमा विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय लन्दन में है।42 एक चरण चौकी पर ध्यानस्थ तीर्थंकर की टांगें भी प्राप्त हुई हैं। नीचे धर्मचक्र तथा उपासकों का अंकन किया गया है। लेख के अनुसार यह हुविष्क कालीन है। कुषाण युग में शूरसेन जनपद से प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ पाँचवें सुमतिनाथ, सातवें सुपार्श्वनाथ, बाइसवें नेमिनाथ एवं उनके साथ कृष्ण और बलराम तथा तेइसवें पार्श्वनाथ और चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की प्रतिमाएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुई हैं। इन प्रतिमाओं को इनके लांछन के साथ पहचाना जा सकता है क्योंकि ये जिन मूर्तियों लाछनों के साथ उत्कीर्ण की गई है। लाछेनों का उद्भव एवं विकास कुषाण काल में मथुरा कला शैली के अन्तर्गत प्रारम्भ हुआ।" कंकाली टीले से एक अभिलिखित लाल चित्तीदार बलुए पत्थर की चरण-चौकी प्राप्त हुई है। चौकी के दोनों ओर एक-एक सिंह का अंकन किया गया है। मध्य में एक चक्र अंकित है। इनमें अंकित अधिकांश आकृतियों के खण्डित मस्तक हैं। लेख से ज्ञात होता है कि यह भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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