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________________ 76 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास स्वास्तिक, आधा खिला कमल, मत्स्ययुगम जिनके मुँह में हार है, पात्र, निधिसहित पात्र, भद्रासन तथा त्रिरत्न का अंकन किया गया है। एक वृत्त के मध्य में लघुपीठिका बनाई गई है उस पर जिन मूर्ति विराजमान है। प्रतिमा के ऊपर छत्र निर्मित है। यह आयागपट्ट अभिलिखित है।28 लेख के अनुसार अचला ने अर्हतपूजा के लिए यह पट्ट स्थापित करवाया था। लेख में विराम के रूप में श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। ई. सन् प्रथम से पूर्व के एक आयागपट्ट पर अष्टमांगलिक प्रतिहार्यों का अंकन किया गया है। चारों कोनों पर चार बड़ी-बड़ी पत्तियों का अंकन है। माला, त्रिरत्न, भद्रासन, दो कमान आधार पर श्रीवत्स एवं सरावसम्पुट का अंकन किया गया है। दोनों ओर एक-एक स्तम्भ का निमाण किया गया है। भीतर की ओर चार त्रिरत्नों के मध्य में वृत्त तथा उसके मध्य में ऊँची चौकी पर अर्हन्त की पद्मासनस्थ मूर्ति है, छत्र ऊपर की ओर उत्कीर्ण है। यह अभिलिखित है। लेख के अनुसार सिंहनन्दि नामक व्यक्ति ने अर्हन्त पूजा के लिए यह आयागपट्ट स्थापित करवाया था। लिपि के आधार पर यह ई. सन् प्रथम से पूर्व की है।30 ___ कंकाली टीले से एक शुंगकालीन अभिलिखित आयागपट्ट प्राप्त हुआ है। यह खण्डित है। मध्य में पद्म व पद्मपत्रावलि से भ्रदासन का अंकन है। अष्ट प्रतिहार्यों में भद्रासन भी प्रमुख है। ___ एक मत्स्य को इसके भीतर निर्मित किया गया है। कमल की पंखुड़ियों व फूलों से भद्रासन की पट्टियों को अलंकृत किया गया है। नीचे का आधा भाग फूल एवं बेल से सुसज्जित है। सबसे नीचे लेख अंकित है। लेख के भावानुसार अर्हन्त बर्द्धमान की अर्चना के लिए आयागपट्ट स्थापित किया गया है। आयागपट्ट का अलंकरण सुन्दर है, जो जैन शिल्पियों की कलाभिरुचि का प्रतीक है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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