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Recenician
संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
| प्रस्तावना
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः श्रीसिद्धि-भद्र-ॐकार-अरविंद-यशोविजयसूरिभ्यो नमः
4 विजय मुनिचन्द्रसूरि
आवकार आगमसिद्ध और परंपरा से प्रसिद्ध बाबतों का खंडन जब जोरशोर से किया जा रहा हो तब उसका शास्त्राधार पूर्वक खंडन कर के आगम एवं परंपरामान्य सिद्धांतों का समर्थन करना आवश्यक बन जाता
थोड़े वर्ष पूर्व विद्युत को अचित्त मनने और मनाने का प्रचार हुआ था तब विद्वद्वर्य आ. श्रीयशोविजयसूरि मा.सा.ने 'विद्युतप्रकाश : सजीव या निर्जीव?' पुस्तक द्वारा उसका सचोट प्रतिकार किया था।
__वर्तमान में थोड़े समय से संमूर्छिम जीवों की कायिक विराधना नहीं होती वैसा प्रचार शुरू हआ है, तब पुनः ऐसे सचोट प्रतिकार की आवश्यकता खड़ी हुई।
स्थानकवासी साधुमार्गी संप्रदाय के आ. रामलालजी म. द्वारा पेश किए गए प्रत्येक विचारबिंदुओं का आगमादि शास्त्रपाठ एवं तर्क द्रारा समुचित उत्तर दिया गया है। एक भ्रम का निरसन किया गया है।
तदर्थ विद्वदर्य आ. श्री यशोविजयसूरि म. सकल संघ के धन्यवाद के पात्र हैं।
___ आ. रामलालजी की बात मानी जाए तो 'मल-मूत्रादि को स्थंडिलभूमि में परठने से उसके सूख जाने से जीवविराधना होगी और गटर में परठने से विराधना नहीं होगी' - ऐसी भ्रमोत्पादक बाबतों का व्यवस्थित निरसन करने के बदल लेखकश्री को खूब खूब धन्यवाद
___अश्विन शुक्ल द्वितीय
वि.स. २०७३ जैन उपाश्रय, कृष्णनगर, अमदाबाद