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________________ PRA ptions संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य ।। णमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ।। संमूर्छिम मनुष्यः आगमिक और पारंपरिक सत्य ४ अविच्छिन्न रूप से चली आ रही संमूर्छिम मनुष्य विषयक आगमिक परंपरा की ओर प्रश्नार्थचिह्न खड़ा करता हुआ स्थानकवासी, साधुमार्गी संप्रदाय के पू. श्रीरामलालजी महाराज का लेख - 'संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक सत्य' उनकी ओर से ही मुझे भेजा हुआ मेरे पढ़ने में आया। पूज्यों की कृपा से हमारा आगमों के साथ तो अनेक सालों का पुराना नाता है। अतः इन आगमों के कुछएक प्रमाण पेश कर के - ‘संमूर्छिम मनुष्य की विराधना हमारी कायिक प्रवृत्ति से शक्य नहीं' - ऐसे मतलब की प्ररूपणा उनके लेख द्वारा ज्ञात हुई तब हृदय को भारी चोट लगी। पहले तो इस लेख की उपेक्षा करना ही वाजिब लगा। परंतु दिन-ब-दिन संमूर्च्छिम मनुष्य विषयक परंपरा को पुष्ट करते हुए आगमिक सबूत हृदय और मन में उभरते रहे । उसी दौरान हमारे पूज्यपाद सुविशालगच्छाधिपति सिद्धांतदिवाकर आगममर्मज्ञ आचार्य भगवंत श्रीजयघोषसूरीश्वरजी महाराजा की पत्र द्वारा सूचना मिली कि इस लेख के विषय में तटस्थतया ऊहापोह करने से जो भी नवनीत मिले उसे श्रीसंघ को अर्पण करना आवश्यक है। पूज्य गच्छाधिपतिश्री की सूचना का सहर्ष स्वीकार कर के आगममंथन प्रारंभ किया... भीतर में उमड़ रहे आगमिक प्रमाणों को शब्ददेह देना निश्चित किया।
SR No.022666
Book TitleSamurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijaysuri, Jaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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