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________________ संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य बलबूते पर उद्घोषित की जा रही है? स्वकायशस्त्र के सिद्धांत अनुसार तेजःकाय तेज का शस्त्र अवश्य बन सकता है । 'टु ध पोइन्ट' आए इस जवाब से बचने हेतु अब उस समूचे विषय को अलग ही दिशा में मोड़ने का प्रयास बिलकुल उचित नहीं । स्वकायशस्त्र से स्वकाय में ही उत्पत्ति का प्रतिरोध मान लेने से तो जीवराशि ही नहीं टिकेगी । कोई भी जीव जन्म ही धारण नहीं कर पाएगा । ऐसी बात कोई भी व्यक्ति नहीं करेगा। अत एव हमने भी ऐसी बात नहीं की है। एक बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि संमूर्छिम मनुष्य के लिए स्वकाय संमूर्छिम मनुष्य ही बनेंगे। उनकी योनि गर्भजमनुष्यसत्क अशुचिस्थान है । तैजस शरीर की गरमी तो उनके लिए परकाय ही बनती है । 'उष्णयोनि वालों के लिए उष्णता प्रतिबंधक नहीं बनती' - रामलालजी महाराज की यह बात को अत्यंत अनुचित सिद्ध करने के लिए ही स्वकायशस्त्र की बात पेश की गई है। तथा पहले (पृ.१६) स्पष्ट कर गए तदनुसार, शरीर की गरमी वगैरह माध्यम से, गर्भजमनुष्यत्वपर्यायविशिष्ट तत्शरीरअधिष्ठाता आत्मा ही संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति के प्रति प्रतिबंधक है । इस कारण संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति का रुक जाना उचित ही है । जैसे उष्णयोनि वाला पानी भी अग्नि के बीच में अपनी योनि बनाने के लिए समर्थ नहीं बनता । स्त्रीपुंसंयोग में उष्णता होने पर भी संमूर्छिम मनुष्य की जो उत्पत्ति स्वीकृत की है वह तो उत्तेजक होने के कारण स्वीकृत की गई है। यह बात पहले ही (पृ. ३५-३६) अत्यंत स्पष्ट कर चुके हैं। _ 'यदि शरीर के बाहर ही संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति मानोगे तो उष्णयोनि की संगति कैसे करोगे ? - यह प्रश्न वैचारिक संदिग्धता को प्रतिबिंबित करता है । संवृतादि योनि की चर्चा की स्पष्टता के अवसर पर संमूर्छिम मनुष्य की विवृतयोनि की संगति करने के बजाय सिर्फ 'सर्वज्ञकथित होने से' ऐसा बता कर पलायनवाद स्वीकारने के बाद ९४
SR No.022666
Book TitleSamurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijaysuri, Jaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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