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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
अनुक्रमणिका * अभिनव मान्यता और सैद्धांतिक मान्यता के बीच की भेदरेखा ................२ ● पंचम समिति का अंगुलीनिर्देश .... • पारिष्ठापनिका समिति से ही संमूर्छिम मनुष्य की कायिक विराधना की सिद्धि . ४ * संपूर्ण आगमों की अनुपलब्धि ..........
..................६ • संमूर्छिम मनुष्य की परंपरा सुविहित एवं प्राचीन .............................८ 8 चारों संप्रदायों की प्रस्तुत परंपरा में सम्मति .................................. • प्रस्तुत परंपरा अभिनव होने में बाधक ....................................... * प्रज्ञापना सूत्र का तात्पर्यार्थ ............ • शरीर में संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति अशक्य - पन्नवणा सूत्र का गर्भितार्थ .. * योनि विषयक विचारणा ..........
............... 8 विवृतयोनि के कथन से परंपरा की सिद्धि ........ .............. * विवृतयोनि की संगति, शरीर के भीतर अनुत्पत्ति पक्ष में ............... • शरीर के भीतर उत्पत्ति मानने में अनिष्ट आपत्ति ..................... * उच्चारादि उच्चारत्व रूप में नहीं, अशुचित्वरूप में उत्पत्तिस्थान ............... * ठाणांग सूत्र के संदर्भ से शरीर से बाहर निकली अशुचि ही अस्वाध्याय ...... • शरीर के बाहर रहे हुए मलादि का ही अशुचितया व्यवहार .................. * स्त्री-पुंसंयोग की स्पष्टता .............. • संमूर्छिम मनुष्य शरीर के बाहर : भगवतीसूत्र ............................ • जीवाभिगम संग्रहणी प्रकरण का संदर्भ .............. • पन्नवणा का तात्पर्यार्थ : शरीर के बाहर ही संमूर्छिम की उत्पत्ति ...... * पंचेन्द्रिय होने पर भी संमूर्छिम मनुष्य हिंस्य क्यों नहीं? .............. • निशीथसूत्र के अर्थघटन की दो परंपरा * अन्यान्य संदर्भो के परिप्रेक्ष्य में निशीथसूत्र का दोहन ................. • निशीथसूत्र का तारण ............ • निशीथसूत्र के प्रस्तुत सूत्र के अर्थघटन विषयक अन्य प्राचीन परंपरा............. • निशीथसूत्र के भिन्न-भिन्न विवेचन ..... • संमूर्छिम मनुष्य की परंपरा को सदिओं प्राचीन सिद्ध करता हुआ स्पष्ट उल्लेख।. ५८ • संमूर्छिम मनुष्य की विराधना निशीथसूत्रसम्मत ............ ............६० • मल-मूत्रादि का शीघ्रतया सूख जाना आवश्यक : निशीथचूर्णि .............. ६०
रत्रा-पुसवाग
का
स्प
ष्टता
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