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________________ ९० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी विघ्नोपशम, समाधिलाभ तथा बोधि है। इसलिए थयथुई' पाठगत जो फल बताया गया है, उसके अनुकूल कारण बताने के लिए तीन स्तुति बताई होंगी। परन्तु स्तुतित्रयं प्रसिद्धम्' इस पद से चतुर्थ स्तुति के लिए अरुचि प्रकट नहीं की है। उन्होंने तो स्वरचित 'प्रतिक्रमण हेतु गर्भित विधि' में चतुर्थ स्तुतिको प्रतिक्रमण की आद्यंतमें की जानेवाली चैत्यवंदनामें विधि के तौर बताया है। पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजी कृत योगविंशिका ग्रंथ की गाथा-११ की टीका में पू.महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजाने "प्रथमे दण्डकेऽधिकृत तीर्थकृद् द्वितीये सर्वे तीर्थकृतः, तृतीये प्रवचनम्, चतुर्थे सम्यग्दृष्टिः शासनाधिष्ठायकः" कहकर चतुर्थ स्तुतिको मान्य किया है. प्रतिमाशतक में थयथुई' पाठ का जो अर्थ किया गया है, वह थयथुई' पाठ जिस उत्तराध्ययन सूत्र के २९वें अध्ययन का है उसकी पू.आ.भ.श्री शांतिसूरिजी कृत बृहद्वृत्ति में थयथुई' की टीका करते हुए कहा गया है कि, स्तवा-देवेन्द्रस्तवादयः स्तुतयः-एकादिसप्तश्लोकान्ता; यत उक्तम् - “एगदुगतिसिलोगा (थुइओ) अन्नेसिं जाव हुंति सत्तेव । देविंदत्थवमाई तेण परंथुत्तया होंति ॥१॥" उपरोक्त पाठ में स्तुतियां एक, दो, तीन यावत् सात श्लोक प्रमाण जानें, ऐसा कहा गया है। प्रतिमाशतक एवं उत्तराध्ययन सूत्र की बृहवृत्ति, दोनों पाठ में स्तुति की संख्या अलग-अलग बताई गई है । इसलिए प्रतिमाशतक के 'स्तुतित्रयं प्रसिद्धम्' पद से त्रिस्तुतिक मतकी मान्यता सिद्ध नहीं होती हैं। इस प्रकार लेखकश्री ने कुतर्क करके अपनी मान्यता को सिद्ध करने का जोरदार प्रयत्न किया है, यह पाठक समझ सकते हैं । किन्तु इस प्रकार झूठी मान्यता सच्ची नहीं बन जाती है। त्रिस्तुतिक मतवाले जहां भी 'त्रिस्तुति',
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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