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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
अकर्त्तव्यनो विवेक पण जीवतो ने जागतो रहेशे. तेना योगे ज आत्मा कर्त्तव्यमां जोडाशे अने अकर्त्तव्यनी निवृत्ति करवा तत्पर बनशे.
___ प्राप्तव्य-अप्राप्तव्यना बोधपूर्वक कर्त्तव्यमा प्रवृत्ति अने अकर्त्तव्यनी निवृत्ति करवाथी पापक्रियाओनी निवृत्ति तो थाय ज छे. साथे साथे पापक्रियाओ द्वारा आत्मा उपर जे नवा कुसंस्कारो पडता हता, ते कुसंस्कारो पापक्रियाओ बंध थवाथी अने धर्मक्रियाओगें आदरपूर्वक सेवन करवाथी नाश पामता जाय छे. पूर्वोक्त विषचक्र उपर घा पडे छे. विषचक्र नबळू पडतुं जाय छे. बीजी बाजुं ज्ञानपूर्वकनी सत्क्रियाओ (धर्मक्रियाओ) द्वारा आत्मामां सुसंस्कारो, सिंचन थाय छे. क्रमशः सुसंस्कारोनुं बळ वधतुं जाय छे. तेना योगे हमेशा आत्मा मोक्षमार्गनी अभिमुख रहे छे. संसारथी विमुख बनी जाय छे.
ज्ञान हितकारी-अहितकारी तत्त्वोनी माहिती आपे छे. बोध ते माहितीनो सदुपयोग करावे छे. धर्मक्रिया बोधने सफळ बनावे छे.
मात्र ज्ञानथी मोक्ष प्राप्त थतो नथी. कारण के, ज्ञान मात्र मार्ग बतावे छे. चाल्या विना मात्र मार्ग जाणी लेवाथी ईष्ट स्थाने पहोंची शकातुं नथी. जेम भोगोनुं ज्ञान होवा मात्रथी तृप्ति थई जती नथी, तेम ज्ञात मार्ग उपर चालीए नहि तो विवक्षित स्थाने पहोंची शकातुं नथी. आथी मोक्ष मार्गमा क्रियानी पण ज्ञान जेटली ज आवश्यकता छे.
ज्ञाने बतावेला सारा स्थाने पहोंचवा माटे प्रवृत्तिरुप क्रिया करवी पडे. ज्ञाने बतावेला भयस्थानोथी बचवा माटे निवृत्तिरुप क्रिया पण करवी पडे.
जैनशासनमां आत्मशुद्धि, रत्नत्रयीनी प्राप्ति अने रत्नत्रयीनी निर्मलता-पूर्णता माटे चैत्यवंदन, देववंदन, प्रतिक्रमण, पडिलेहण आदि धर्मक्रियाओ बतावी छे.
तेमां चैत्यवंदन दरेक भूमिकाना साधको माटे भावोल्लासमुं परम कारण छे. प्राथमिक कक्षाना साधकथी मांडीने उच्च कक्षाना योगीओ माटे चैत्यवंदन परम