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________________ १५६ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी विहिणा पारिअ सम्मत्त, सुद्धि हेउं च पढइ उज्जोअं । तह सव्वलोअ अरिहंत चेइआराहणुस्सग्गं ॥१२॥ काउं उज्जोअगरं चिंतिअ पारेइ सुद्धसंमतो । पुक्खरवरदीवड्डे, कड्डइ सुअ सोहण निमित्तं ॥१३॥ पुण पण वीसुस्सासं, उस्सगं कुणइ पारए विहिणा । तो सयल कुसल किरिआ फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥१४॥ अह सुअ समिद्धिहेउं सुअ देवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोक्कारं सुणइ व देईव तीइ थुयं ॥१५॥ एवं खित्तसुरीए उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई । पढिउण पंचमंगल, मुवविसइ पमज्ज संडासे ॥१६॥ पुव्वविहिणेव पेसिअ, पुत्तिं दाउण वंदणे गुरुणो । इच्छामो अणुसट्ठित्ति, भणिओ जाणुहि तो ठाई ॥१७॥ गुरु थुई गहणे थुइतिण्णि, वद्धमाणक्खरस्सरो पढइ । सक्वत्थयत्थवं पढिअ कुणइ पच्छित्ता उस्सग्गं ॥१८॥ भावार्थ : चिरतंनाचार्य कृत गाथाओं से प्रतिक्रमण की विधि इस प्रकार है। इस मनुष्यजन्म में साधु तथा श्रावक को भी पंचविध आचार की शुद्धि करनेवाला प्रतिक्रमण गुरु के साथ अथवा गुरु का योग न हो तो अकेले भी अवश्य करना चाहिए। (१) __ (जावंति चेइयाई, जावंत केवि साहु; ये दो गाथा, स्तोत्र (स्तवन) प्रणिधान ( जयवीयराय) छोडकर शेष शक्रस्तव पर्यंत (चार थोय से) चैत्यवंदना करके चार 'भगवानहं' प्रमुख खमासमणां देकर ( भूमि के विषय में मस्तक रखकर सभी अतिचारों का मिच्छामि दुक्कडं करें।(२) प्रथम सामायिक (करेमि भंते), इच्छामि ठामि काउस्सग्गं इत्यादि सूत्र बोलें और बादमें भुजाएं और कोहनी लंबी करके रजोहरण अथवा चरवलो तथा
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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