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त्रिस्ततिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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श्रीमानविजयजी कृत धर्मसंग्रह ग्रंथ में देवसि प्रतिक्रमण की विधि दर्शाने के लिए रखी हैं । जो निम्नानुसार हैं। इनमें प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में चार थोय से चैत्यवंदना करने की विधि बताई गई है।
पूर्वाचार्य प्रणीताः गाथः। ___पंचविहायार विसुद्धि-हेउमिह साहु सावगो वावि । पडिक्कमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्को वि ॥१॥
वंदित्तु चेइयाई, दाउं चउराइ ए खमासमणे । भूनिहिअ सिरोसयला-इआरे मिच्छा दुक्कडं देइ ॥२॥
सामाइय पुव्व मिच्छामि ठाउं काउस्सग्गमिच्चाई। सुत्तं भणिअ पलंबिअ, भुअ कुप्परधरिय पहिरणओ ॥३॥
घोडगमाई अ दोसेहिं विरहिअंतो करइ उस्सग्गं । नाहिअहोज्जाणुद्धं चउरंगुल ठविअ कडिपट्टो ॥४॥ तत्थय धरेइ हिअए-ज्जहक्कम दिणकएअ अईआरे ।
पारिउ णमोक्कारेण पढइ चउवीस थयदंडं ॥५॥ संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्ग विअय बाहुज्झुओ।
मुहणं तगं च कायं, पेहेए पंचवीस इह ॥६॥ उट्ठिअठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं ।
बत्तीसदोसरहिअं पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥७॥ अह सम्ममवणयंगो करजुग विहि धरिअ पुत्ति रयहरणो ।
परिचिंतिअ अइआरे जहक्कम्मं गुरु पुरोविअडे ॥८॥ अह उवविसत्तु सुत्तं, सामाइअ माइअ पढिअ पयओ। अब्भुट्टिओम्हि इच्चाइ, पढइ दुहओ ठिओ विहिणा ॥९॥ ___ दाउण वंदणं तो, पणगाइ सुज्जइ सुखामए तिन्नि । किइ कम्मं किरि आयरिअ, माइ गाहातिगं पढइ ॥१०॥ इअ सामाइअ उस्सग्ग, सुत्त मुच्चरिअ काउस्सग्ग ठिओ। चिंतइ उज्जोअदुगं चरित्त अइआर सुद्धिकए ॥११॥