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________________ 58 तिलकमञ्जरी का कथासार उसे सान्त्वना दी और समरकेतु की खोज में विद्याधरों को नियुक्त कर दिया और मुझे आदेश दिया कि आपको लेकर मैं आश्रम में आ जाऊँ।" यह सुनकर मैं अनुचरों के साथ मलयसुन्दरी के दिव्य आश्रम में आ गया। एक दिन सांयकाल में शङ्खपाणि नामक कोषाध्यक्ष ने आकर पिताजी के द्वारा भिजवाए हुए चन्द्रातप हार और अंगुलीयक मुझे दिए। मुझे वे परिचित से लगे। मैंने गन्धर्वक के हाथों वह हार तिलकमञ्जरी के लिए और अंगुलीयक मलयसुन्दरी के लिए भिजवा दिया। अगले दिन अस्वस्थ चित्त सी मलयसुन्दरी की परिचारिका चतुरिका मेरे पास आई और मुझे तिलकमञ्जरी का पत्र दिया। उसमें लिखा था - इस मुक्ताहार के कण्ठालिङ्गन ने मेरा आपसे मिलन असम्भव कर दिया है। तथापि जब तक जीवित हूँ तब तक मैं विस्मृत करने योग्य नहीं हूँ।" मैं उसके इस वियोग को सहन नहीं कर पाया और आत्महत्या करने के लिए विजयार्ध पर्वत के शिखर पर चढ़ गया। वहाँ मैंने पन्द्रह वर्षीय राजपुत्री को एक राजकुमार को मनाने के लिए बार-बार उसके चरणों में गिरते देखा। मेरे पूछने पर उसने बताया कि यह चण्डगह्वर की संहार नामक सर्वकामिक चट्टान-शिखर है। मैं अनङ्गरति नामक विद्याधर कुमार हूँ। बाल्यावस्था में ही दुष्ट बन्धुओं ने आकर मेरी सम्पत्ति आदि को हड़प लिया। इसलिए मैं दुखी होकर इस शिखर से गिरकर मरना चाहता हूँ, परन्तु यह मुझे रोक रही है। यह सुनकर मैंने उस कुमार को कहा कि यदि भोग की इच्छा है तो मेरा राज्य ले लो। परन्तु उसने अस्वीकार कर दिया और कहा- "यदि आप मुझ पर अनुकम्पा करना चाहते हैं तो असाधारण पुरुष द्वारा साध्य, समस्त मन्त्रों में श्रेष्ठ इस मन्त्र की आराधना करके उसके प्रभाव से राज्य अर्जित करके मुझे दें।" मैंने विधिवत् मन्त्र ग्रहण करके साधना आरम्भ की। छ: मास बाद देवी ने दर्शन देकर वर माँगने के लिए कहा। मैंने देवी से अनङ्गरति के मनोरथ को पूर्ण करने का वर माँगा तब देवी ने कहा - "अनङ्गरति के स्वार्थ में भी परार्थ ही प्रेरित है। विजयार्ध पर्वत के उत्तर शिखर श्रेणी में गगनवल्लभ नगर में विक्रमबाहु नामक चक्रवर्ती सम्राट् था, जिन्हे विषयों से विरक्ति हो गई थी। राज्य के उत्तराधिकारी के अनुरूप व्यक्ति को न पाकर, प्रधान सचिव शाक्यबुद्धि ने अपने पुत्र अनङ्गरति को बुलाकर सम्राट बनने के सभी आश्लिष्य कण्ठममुना मुक्ताहारेण हृदि निविष्टेन। सरुषेव वारितो मे त्वदुरःपरिम्भणारम्भः।। ति. म., पृ. 396
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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