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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य आरूढ़ होकर वैताढ्य पर्वत के मध्यवर्ती वन की शोभा को देखते हुए गगनवल्लभ नगर में गए। वहाँ राजभवन में उन्होंने स्वागतोत्सव का आनन्द लिया। भोजनादि के उपरान्त रात्रि में हरिवाहन ने समरकेतु के दुर्बल व म्लान शरीर को देखकर दुखी होते हुए मार्ग वृत्तान्त पूछा, तब समरकेतु ने सम्पूर्ण वृत्तान्त बताया। अगले दिन वे वैताढ्य पर्वत पर गए। वहाँ से उन्होंने दर्शनीय दृश्यों का अवलोकन किया। वहाँ समरकेतु के द्वारा पूछे जाने पर हरिवाहन ने अपना वृत्तान्त बताना आरम्भ किया - हरिवाहन का वृत्तान्त : मुझे लेकर भागते हुए वह मदान्ध हाथी अचानक ही उछलकर अन्तरिक्ष में चला गया और उत्तर दिशा की ओर उड़ने लगा। कुछ ही देर में वह एकशृंग नामक पर्वत के शिखर के ऊपर आकाशमार्ग में पहुंच गया। निकट ही वैताढ्य पर्वत को देखकर मैंने सोचा कि न जाने यह मुझे कहाँ ले जाएगा और उसे लौटाने का निश्चय कर मैंने अपने जघन स्थल से आबद्ध छुरिका का हाथ से स्पर्श किया। छुरिका को देखकर वह भीषण चीत्कार करता हुआ अदृष्टपार नामक सरोवर में गिर पड़ा। गिरने के बाद वह हाथी अन्तर्ध्यान हो गया और मैं किसी प्रकार तैरकर किनारे पर आया। कुछ देर वहीं चिन्तन कर किसी नगर, ग्राम अथवा आश्रम की तलाश में वहाँ से चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर मैंने सरोवर-तट की बालू पर स्त्रियों के पद-चिहनों को देखा। उनका अनुसरण करते हुए मैंने एक इलायची लतागृह में कोमल पुष्पों को तोड़ती हुए एक सुन्दर कन्या को देखा और पास जाकर उसका परिचय पूछा। परन्तु उसने उत्तर नहीं दिया और वहाँ से चली गई। गन्धर्वक के दिखाए चित्र का स्मरण करते हुए 'यह तिलकमञ्जरी ही थी' ऐसा निश्चय कर उसके पुनः दर्शन की अभिलाषा से मैंने उसे इधर-उधर ढूंढा पर वह नहीं मिली। तदनन्तर उस रात मैं उस इलायची लतागृह के रक्ताशोक वृक्ष के समीप शय्या रचकर सो गया। अगले दिन उत्तर दिशा में चलने पर मैंने एक मन्दिर देखा। उस मन्दिर में देवता को नमस्कार करने के पश्चात् मैंने एक अठारह वर्षीय तापस कन्या को देखा। मुझे देखकर उसने मेरा स्वागत किया और अपने निवास स्थल तपोमन्दिर में ले गई। वहाँ उसने मेरा परिचय पूछा। मैंने अपना सारा वृत्तान्त सुना दिया और उसके विषय में पूछा। उसने धीरे-धीरे कहना प्रारम्भ कर किया -
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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