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धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
8. वीरस्तुति : इसमें 11 पद्य हैं। धनपाल ने इसमें संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं का प्रयोग किया है। प्रत्येक पद्य की प्रथम पंक्ति संस्कृत तथा दूसरी पंक्ति प्राकृत में है। इसका प्रथम पद्य 'सरभसनृत्यत्सुर.....3 तथा अन्तिम पद्य 'तं नमतनम्रशतमखमणि.... है। धनपाल ने इसमें श्वेताम्बर सम्प्रदाय की परम्पराओं पर प्रकाश डाला है।
9. नाममाला:
यह संस्कृत भाषा का कोश है, जो वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं है।
धनपाल नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से सम्पन्न कवि थे। अपनी प्रतिभा के बल पर ही उन्होंने भोजराज की राजसभा में अन्यतम स्थान प्राप्त किया था। संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश में रचित उनकी प्रौढ़ रचनाएँ उनकी प्रतिभा को समुचित द्योतित करती हैं।
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ऋषभपंचाशिका; वीरस्तुति, पृ. 269 सरभसनृत्यत्सुरयुवतिकुचतटत्रुटितहारतारकितम्। जायं सिद्धत्थनरिंदमंदिरं जस्स जम्मम्मि।। - ऋषभपंचाशिका, वीरस्तुति, पद्य 1, पृ. 269 तं नमत नम्रतशतमखमणिमुकुटविटङ्कघृष्टचरणयुगम्। भुवणस्स वि बंधणपालणक्खमं वद्धमाणजिणं।। - वही,पद्य 11, पृ. 270