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________________ 20 धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व धनपाल का जीवन धनपाल ने स्वरचना तिलकमञ्जरी में अपने जीवन, पिता एवं पितामह आदि का वर्णन किया है। धनपाल का जन्म मध्यप्रदेश के सांकाश्य नगर के काश्यप गोत्रिय ब्राह्मण कुल में हुआ। इनके पिता 'सर्वदेव' एक विद्वान् ब्राह्मण, समस्त शास्त्रों के अध्येता तथा कर्मकाण्ड में निपुण थे। उनकी वाणी कमनीय काव्य के निबन्धन तथा अर्थ मीमांसा करने में प्रकृष्ट थी।' धनपाल के अनुज का नाम शोभन था। यह दर्शन, व्याकरण तथा साहित्य शास्त्र का विद्वान् था। इसे अपने पिता में परमश्रद्धा थी। यह अपने पिता की आज्ञा से जैन धर्म की दीक्षा लेकर जैन मुनि बन गया था। शोभन ने चौबीस तीर्थकरों की स्तुति में 'स्तुतिचतुर्विंशतिका' की रचना की थी। शोभन के आग्रह करने पर धनपाल ने इस पर टीका लिखी थी। धनपाल की भगिनी का नाम सुन्दरी था, जो संस्कृत एवं प्राकृत भाषा की विदुषी थी। सुन्दरी के लिए धनपाल ने पाइयलच्छीनाममाला नामक प्राकृत कोश की रचना की थी। धनपाल का विवाह 'धनश्री' नामक अत्यन्त कुलीन कन्या से हुआ। प्रबन्धचिन्तामणि में धनपाल की पत्नी के लिए ब्राह्मणी शब्द का प्रयोग किया गया है।' धनपाल के पितामह का नाम देवर्षि था। 'देवर्षि' अत्यन्त दानी थे। धनपाल उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं - "मध्य देश के सांकाश्य नगर में एक द्विज उत्पन्न हुआ, जो दानवर्णित्व से विभूषित होते हुए भी देवर्षि नाम से प्रसिद्ध हुआ। धनपाल का पारिवारिक वातावरण अध्ययनात्मक था। धनपाल के पिता एवं पितामह वेद, वेदाङ्गो के प्रकाण्ड पण्डित तथा धार्मिक कर्मकाण्डों में निपुण थे, इसी कारण धनपाल की शास्त्राध्ययन में रुचि स्वतः ही हो गयी थी। धनपाल ने श्रुतियों तथा स्मृतियों का गहन अध्ययन किया था। 1. शास्त्रेष्वधीती कुशलः क्रियासु, बन्धे च बोधे च गिरां प्रकृष्टः। तस्यात्मजन्मा समभून्महात्मा, देवः स्वयंभूरिव सर्वदेवः।। - ति. म., भूमिका, पद्य 52 बोरदिया, हीराबाई; जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ, पृ. 184 . मेरूतुंग; प्रबन्धचिन्तामणि, पृ. 36 आसीद् द्विजन्माऽखिलमध्यदेशप्रकाशसांकाश्यनिवेशजन्मा। अलब्ध देवर्षिरिति प्रसिद्धिं यो दानवर्षित्वविभूषितोऽपि।। - ति. म., भूमिका, पद्य 51
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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