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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
तृतीय अध्याय में तिलकमञ्जरी रमणीय कथा का सार तथा तिलकमञ्जरी के टीकाकारों का वर्णन किया गया है। तिलकमञ्जरी नायक हरिवाहन तथा नायिका तिलकमञ्जरी की पवित्र प्रेम कथा है। हरिवाहन और तिलकमञ्जरी पूर्वजन्म में ज्वलनप्रभ और प्रियङ्गसुन्दरी नामक देव दम्पत्ति थे। दिव्य लोक वास का अवधि समाप्त हो जाने पर दोनों वियुक्त हो जाते हैं। दिव्य आभरण इन दोनों के पुनः मिलन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पुनर्जन्माधारित इस कथा को धनपाल ने दिव्य, अदिव्य, दिव्यादिव्य पात्रों के वर्णन तथा वर, शाप, अपहरण, आत्महत्या सदृश अनेक कथा मोड़ों से रोचक व सरस बनाया है।
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तिलकमञ्जरी ने अपने समय में ही प्रसिद्धि को प्राप्त कर लिया था। इसका कथानक इतना सरस व रमणीय है कि तीन परवर्ती कवियों ने इसे कथानक को आधार बनाकर काव्य की रचना की । तिलकमञ्जरी पर चार टीकाएँ प्राप्त होती है- शान्तिसूरि का टिप्पणक, विजयलावण्यसूरि की पराग टीका, पण्यास पद्मसागर की वृत्ति तथा ताड़पत्रीय टिप्पणी ।
चतुर्थ अध्याय पात्रों के चारित्रिक सौन्दर्य से सम्बन्धित है । गद्य काव्य में पात्रों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। धनपाल ने अपने कुछ पात्रों को दिव्य गुणों से युक्त किया है। कुछ पात्रों का सम्बन्ध दिव्यलोकों से भी है। इस प्रकार तिलकमञ्जरी के कुछ पात्र दिव्य, कुछ अदिव्य तथा कुछ दिव्यादिव्य है। विद्याधरादि दिव्य पात्र हैं ये अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न है। मेघवाहन, वज्रायुध आदि मानवोचित गुणों व शक्तियों से युक्त अदिव्य पात्र हैं। हरिवाहन, समरकेतु आदि दिव्य तथा मानवोचित दोनों गुणों से सम्पन्न हैं अतः ये दिव्यादिव्य पात्र हैं। धनपाल ने हरिवाहन को सभी स्पृहणीय गुणों से युक्त कर उसे एक आदर्श नायक के रूप में प्रस्तुत किया है। नायिका तिलकमञ्जरी भी सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति तथा स्त्रीसुलभ गुणों की निधिभूत है।
पञ्चम अध्याय रस विवेचना से सम्बन्धित है। तिलकमञ्जरी का अङ्गी रस शृङ्गार है। धनपाल ने संयोग शृङ्गार की चारु अभिव्यक्ति हेतु विप्रलम्भ शृङ्गार की सुन्दर योजना की है। सहृदय विप्रलम्भ शृङ्गार की अभिव्यञ्जना से पुनः पुनः चमत्कृत होता रहता है। धनपाल ने हरिवाहन और तिलकमञ्जरी तथा समरकेतु और मलयसुन्दरी के विप्रलम्भ शृङ्गार की मनोहारी अभिव्यञ्जना की है। तिलकमञ्जरी के वियोग में हरिवाहन की विरहवेदना इतनी अधिक बढ़ जाती है