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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
लेकर प्रसंगानुरूप व भावानुरूप शैली का अवलम्बन किया है। धनपाल की शैली श्लेष बहुलता व अतिदीर्घ समास परम्परा से रहित है । धनपाल ने प्रसङ्ग की आवश्यकतानुसार दीर्घ समासों का भी प्रयोग किया है। परन्तु उनके बीच में छोटे-छोटे समासों की योजनाकर अपनी शैली को सरल व सुबोध बनाया है। इस प्रकार धनपाल ने गद्य शैली के लिए अपने आदर्शों को प्रस्तुत किया है।
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