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तिलकमञ्जरी की भाषा शैली गया है। लक्ष्मी की विशेषताओं का गौड़ी शैली में ओजस्वी वर्णन प्रभावोत्पादक बन गया है।
गलितगर्वगन्धर्वशिथिलितगीतगोष्ठीस्वरविचारा विषण्णसाध्यपरिषदा विखिन्नसिद्धनिषध्यमानगानोन्मुखमुखरकिन्नरकुला पानेकेलि निरपेक्षयक्षशून्यीकृतोपवनतरुखण्डलतामण्डपारणरणकगृहीतगृहदेवता वनदेवतासदु:खदृश्यमानतत्क्षणम्लानकल्पपादपा, स्थान स्थान पूज्यमानस्विन्ना सिद्धायतनदेवताप्रतिमा प्रतिमन्दिरमाकर्ण्यमानश्रवणदुष्टहाकष्टशब्दा दृष्टा । पृ. 41
प्रकृत उदाहरण में रति विशाला नामक नगरी में हो रहे अनिष्टों को सम्यग्तया प्रकट करने के लिए दीर्घ समासों का प्रयोग किया गया है।
आविष्कृताटोपदुःप्रसहैश्च तैः सह प्राकारशिखरवर्तिनः कुसुमशेखरराज्य लो क स्यान्यो न्यकृत निर्सिनानि समत्सर सु भट सिंहनादबधिरी कृताभ्यर्णवासिजनकर्णघोरणिनीरन्ध्र पाषाणक्षेपक्षाणमात्रस्थलीकृताम्बरलतानि निर्दयप्रहततूर्यरवपर्यासितकातरकरशस्त्राणि यन्त्रविक्षिप्ताग्नितप्ततैलच्छटाविघ टमानविकटपदातिगुम्फानि कुठारताडित प्रतोलीकपाटनिः स्वनानुसारनिपतत्प्रबलपाषाणवर्षाणि कृतकलकल ग्रामीणावलोक्य मानप्रहारविलकलविद्रवद्विपघटानि भयानकानि च .... प्रतिदिनमायोधनान्यवन् । पृ. 83
यहाँ काञ्चीनरेश कुसुमशेखर व वज्रायुध के मध्य युद्ध का वर्णन किया गया है। दीर्घ समासों से वर्णन प्रभावशाली बन गया है।
साहसरहितजनदुःप्रवेशया शिथिलमूलदुर्बलजटाजालकैः परस्परावकाशमिव दातुमप्रसारितशाखामण्डलैस्तारकानिकुरुम्बमिव दुखतारतुङ्गतटाभिरुत्कोटि पाषाणपटलस्खलनबहुमुखप्रवृत्तमुखरश्रोतोजलाभिरनतिनिबिडनिर्गुण्डीलतागुल्मगुपि लीकृतोपलवालुकाबहुलविच्छिन्नान्तरालपुलिनाभिरुच्छलत्क्षलमलवननिलीननाहलनिवहकाहलकोलाहलाभिः शैलनिम्नगाभिर्निम्नीकृतान्तरालया ..... । पृ. 199
यहाँ अटवी की भयावहता का वर्णन किया गया है इसी प्रकार समुद्र वर्णन, वैताढ्य वर्णन, लक्ष्मी वर्णन, वेताल वर्णन, युद्ध वर्णन आदि में गौड़ी शैली के उदाहरण प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार धनपाल ने तिलकमञ्जरी में किसी विशेष शैली का आश्रय न