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________________ 214 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति है वहाँ उपकारर्योपकारकभाव प्रकरण वक्रता होती है। धनपाल ने तिलकमञ्जरी में कथा के मुख्य फल की प्राप्ति में सहायक प्रकरणों की सुन्दर योजना की है। ज्वलनप्रभ नामक वैमानिक मेघवाहन को अपनी प्रिय पत्नी प्रियङ्गसुन्दरी का दिव्यहार प्रदान करता है, जो कथा के मुख्य फल अर्थात हरिवाहन व तिलकमञ्जरी (पूर्वजन्म के ज्वलनप्रभ और प्रियङ्गसुन्दरी) के सुखद मिलन में उपकारक सिद्ध होता है अनुगृहाणेमां मनःपरितोषाय मे नृपचन्द्र, चन्द्रातपाभिधानं हारम्। गृहीतस्तु कदाचिन्मनुष्यलोके लब्धजन्मनः पुनरानन्दयति दृष्टिमिष्टतमदर्शनं चैनम्। अमरलोकाच्च्युता कालक्रमेण देव्यपि मे प्रियङ्गसुन्दरी कदाचिदा लोकयति। संभवन्ति च भवार्वणे विविधकर्मवशवर्तिना जन्तू नामने कशो जन्मान्तरजातसम्बन्धैर्बन्धुभिः सुहृद्भिरथैश्च नानाविधैः सार्धयबाधिताः पुनस्ते संबन्थाः । पृ. 43-44 इलाइची लता मण्डप में जब तिलकमञ्जरी प्रथम बार हरिवाहन के दर्शन करती है तब जन्म से ही पुरुषों के प्रति विद्वेष भावना रखने वाली तिलकमञ्जरी मे मन में उसके प्रति अनुराग उत्पन्न हो जाता है। मलयसुन्दरी के आश्रम में हरिवाहन के पुनः दर्शनों से यह अनुराग गाढ़ हो जाता है। वह बड़े ही स्नेहपूर्ण नेत्रों से उसे देखती है तथा अपने हाथों से ही उसे ताम्बूल देती है। धनपाल ने इन दोनों के पुनः मिलन का रमणीय संयोजन किया है - सलीलपरिवर्तितमुखी तत्क्षणमेव सा तीक्ष्णतरलायतां बाणावलीमिव कुसुमबाणस्य, ... मुकुलितां मदेन, विस्तारितां विस्मयेन, प्रेरितामभिलाषेण, विषमितां वीडया, वृष्टिमिवामृतस्य, सृष्टिमिवासौख्यस्य, प्रकृष्टान्तः प्रीतिशंसिनी वपुषि मे दृष्टिमसृजत्। ....तिलकमञ्जरी तु किंचिदुपजातवैलक्ष्या क्षणमधोमुखीभूय ....ताम्बूलदायिकाकरतलादन्तः स्फुरद्भिः स्फटिकधवलैर्नखमयूखनिर्गमः द्विगुणीकृतान्तर्गतस्थूलकर्पूरशकलं स्वहस्तेन ताम्बूलमदात्। पृ. 362-63 चित्रमाय गज का रूप धारण कर हरिवाहन का अपहरण कर उसे अदृष्टपार सरोवर में लाकर छोड़ देता है। यह प्रकरण भी हरिवाहन को मुख्य फल की प्राप्ति में बहुत सहायक सिद्ध होता है। यहीं अदृष्टपार सरोवर के वन में हरिवाहन प्रथम बार तिलकमञ्जरी के साक्षात् दर्शन करता है। जिससे तिलकमञ्जरी को प्राप्त
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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