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________________ 205 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य __ अनुपरतकौतुकश्च मुहुः केशपाशे, मुहुर्मुखशशिनि, मुहुरधरपत्रे, मुहुरक्षिपात्रयोः मुहुः, कण्ठकन्दले, मुहुः स्तनमण्डले, मुहुर्मध्यभागे, मुहुर्नाभिचक्राभोगे, मुहुर्जघनभारे, मुहुरूरुस्तम्भयोः, मुहुश्चरणवारिरुहयोः, कृतारोहावरोहया दृष्ट्या तां व्यभावयत्। पृ. 162 यहाँ तिलकमञ्जरी के अङ्गो के सहज सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। हरिवाहन पुनः पुनः तिलकमञ्जरी के केशपाशों को, पुनः उसके चन्द्रमुख को, पुनः अधर पल्लव को, पुनः सुन्दर नेत्रों को, पुनः कण्ठनाल को, पुनः कटिप्रदेश को, पुनः नाभिमण्डल के विस्तार को, पुनः उरुस्तम्भों को, पुनः चरणकमलों को देखता है। तिलकमञ्जरी का अङ्गसौष्ठव ऐसा है कि हरिवाहन के नेत्र उसके किसी भी अङ्ग पर स्थिर नहीं हो रहे। वे तत्क्षण ही अन्य अङ्ग सौन्दर्य के दर्शनार्थ नीचे की ओर फिसल जाते है मानो यह निर्णय न कर पा रहे हों, कि यह अङ्ग अधिक सुन्दर है अथवा वह। ___ यहाँ धनपाल ने तिलकमञ्जरी के सहज सुन्दर अङ्गों का रमणीय वर्णन किया है जो सहृदय हृदयावर्जक है। प्रतिभासम्पन्न कवि ही अपने पात्रों के सहज सौन्दर्य का ऐसा सजीव वर्णन कर सकता है जिससे सहृदय के नेत्रों के समक्ष उस पात्र का रेखाचित्र बन जाए। धनपाल ऐसे वर्णनों में पूर्णतः सफल कवि है। मदिरावती का अङ्गसौन्दर्य भी द्रष्टव्य है - आढ्यश्रोणि दरिद्रमध्यसरणि स्रस्तांसमुच्चस्तनं नीरान्ध्रालकमच्छगण्डफलकं छेक< मुग्धेक्षणम्। शालीनस्मितमस्मिताञ्चितपदन्यासं विभर्ति स्म या ___ स्वादिष्टोक्तिनिषेकमेकविकसल्लावण्यपुण्यं वपुः॥" मदिरावती का नितम्ब प्रदेश विस्तृत व कटिप्रदेश कृश था। उसके स्तन उन्नत व कन्धे झुके हुए थे। (मानो उन्नत स्तनों का भार वहन न कर पा रहे हों) उसके केश अविरल, निर्मल चौड़े गाल, भौंहे कुटिल व श्यामल तथा नेत्र रमणीय थे। उसका मन्द हास सलज्ज व पाद विक्षेप अभिमान से युक्त था। वह अतिमधुर उक्तियों से अभिषिक्त, अद्वितीय व उज्जवल सौन्दर्य से युक्त पुण्य शरीर को धारण करती थी। 77. ति. म., पृ. 23
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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