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________________ तिलकमञ्जरी में औचित्य 173 को अपना परम मित्र स्वीकार कर लेता है। जब मदान्ध गज हरिवाहन का अपहरण कर लेता है तो यह अकेला ही निर्जन वनों, दुर्गम पर्वतों पर उसे खोजने निकल पड़ता है, क्योंकि उसने हरिवाहन का सहचर बनना स्वीकार किया है। एक मित्र का यह कर्त्तव्य है कि वह सुख-दुःख में अपने मित्र का साथ दे तथा विपत्ति में कदापि उसका साथ न छोड़े। समरकेतु अपने मित्र धर्म पालन में अन्य मित्रों से कहीं आगे निकल गया है और सहृदय के हृदय में अपना उत्युच्च स्थान बना लिया है। अत: यहाँ व्रतौचित्य है। गन्धर्वक का तिलकमञ्जरी को सभी प्रकार से योग्य हरिवाहन को पत्नी बनाने का व्रत धारण करना विशेष रूप से द्रष्टव्य है। गन्धर्वक एक विद्याधर है। स्वप्नों की देवी के अनुसार विद्याधर राजकुमारी तिलकमञ्जरी का विवाह किसी पृथ्वीवासी चक्रवर्ती राजकुमार से होगा। इसी कारण अपनी माता चित्र लेखा से आज्ञा प्राप्त कर यह अपने मित्र चित्रमाय के साथ तिलकमञ्जरी के योग्य वर की खोज में निकलता है। यह अत्यधिक गुण और बुद्धिमान है। राजकुमार हरिवाहन को देखकर वह उसे ही राजकुमारी तिलकमञ्जरी के सर्वाधिक उपर्युक्त पाता है और उसे तिलकमञ्जरी से मिलाने का व्रत लेता है। विद्याधर साम्रज्ञी पत्रलेखा के कार्य से जाते हुए वह चित्रमाय को निर्देश देता है कि वह कोई भी रूप धारण कर हरिवाहन को तिलकमञ्जरी के पास ले जाए, जिससे उसको देखकर तिलकमञ्जरी का पुरुष विद्वेष समाप्त हो जाए और उसके हृदय में प्रेम का सञ्चार हो जाए। यक्ष के शाप से शुक बन जाने पर भी यह हरिवाहन के अनेक कार्य सम्पादित करता है।। हरिवाहन के वियोग में तिलकमञ्जरी को प्राण त्यागने के लिए उद्यत देखकर, यह उसके दुःख से दु:खी होकर पर्वत से गिरकर मरने चल पड़ता है। अन्त में हरिवाहन को तिलकमञ्जरी के विषय में सूचना देकर यह ही उन दोनों के मिलन का साधन बनता है। इस प्रकार गन्धर्वक अनेक कष्ट सहकर भी अन्त तक अपने व्रत का दृढ़तापूर्वक पालन करता है। अतः यहाँ व्रतौचित्य है। प्रस्तुत विवेचना से स्पष्ट है कि धनपाल की तिलकमञ्जरी में क्षेमेन्द्रोक्त औचित्य का निर्वहण सर्वत्र परिलक्षित होता है जिससे काव्य की रमणीयता और बढ़ गई है।
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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