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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
देखते हैं कि इन्द्र का वाहन ऐरावत हाथी आकाश से उतर कर मदिरावती के स्तनों से उसी प्रकार दुग्ध पान करता है, जिस प्रकार श्री गणेश माता पार्वती के स्तनों से दुग्धपान करते थे। इस दृष्टि से हरिवाहन का नाम रखना उचित ही है। हरिवाहन नाम तथा श्रीगणेश और ऐरावत में साधर्म्य दिखाने से यह भी व्यञ्जित हो रहा है कि जिस प्रकार गजानन सभी के वन्दनीय है। उसी प्रकार हरिवाहन भी अपने कर्मों से इस लोक में यश प्राप्त करेगा।
पूर्वजन्म में हरिवाहन ज्वलनप्रभ नामक दिव्य वैमानिक था। हरिवाहन नाम से इसके पूर्व जन्म की दिव्यता का तथा इस जन्म मे इसके द्वारा सम्पादित किए जाने वाले शुभकर्मों का भी आभास हो रहा है। अतः हरिवाहन नाम औचित्यपूर्ण
है।
तिलकमञ्जरी में वर्णित अयोध्यानगरी के सम्राट का नाम 'मेघवाहन' है। मेघवाहन का अर्थ है मेघ वाहन है जिसके अथवा जो मेघों का संचालन करे - मेघो वाहनमस्य, मेघान् वाहयति चालयति यः । मेघवाहन नाम से नामधारी का मेघों पर नियत्रंण का ज्ञान होता है। इन्द्र मेघों का स्वामी तथा नियन्त्रक है। मेघवाहन इन्द्र का ही अपर नाम है। जिस प्रकार इन्द्र मेघों से वर्षा करना कर, पृथ्वी को अन्न व धान्य से परिपूर्ण करके, प्रजाओं को सुखी करता है, उसी प्रकार मेघवाहन भी अपने सुशासन व कल्याणकारी नीतियों की वर्षा से अपनी प्रजा को सन्तुष्ट व सुखी करता है। धनपाल ने अयोध्या को स्वर्ग से उत्कृष्ट कहा है। स्वर्ग का अधिपति इन्द्र है। इस प्रकार स्वर्ग के समान रमणीय अयोध्या नगरी का स्वामी मेघवाहन (इन्द्र) है। इन्द्र के अन्य नामों की अपेक्षा मेघवाहन नाम प्रजा के लिए इसके कल्याणकारी स्वरूप को प्रकट करता है। जिस प्रकार मेघों का प्रसार सर्वत्र है, उसी प्रकार अपने सचिवों के माध्यम से मेघवाहन का प्रसार अपने पूरे साम्राज्य में है। इस प्रकार मेघवाहन नाम अपने नामौचित्य को नितरां द्योतित करता है।
सम्राट मेघवाहन की नगरी 'अयोध्या' भी नामौचित्य का अनुपम उदाहरण है। अयोध्या- योद्धं शक्या योध्या, न योध्या अयोध्या अर्थात् जिससे युद्ध न किया जा सके। अयोध्या का अपर नाम साकेत भी है। परन्तु यहाँ साकेत उस अर्थ
60. स्वप्ने शतमुन्युवाहनो वारणपतिर्दृष्टः इति संप्रधार्य ....हरिवाहन इति शिशो म चक्रे।
ति.म., पृ. 78