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________________ 149 तिलकमञ्जरी में औचित्य से रहित थे, तीनों लोकों के ज्ञानालोकजनक होते हुए भी ज्ञानदीपभिन्न थे, विरोधपरिहार-मोक्षरूप सुख के सागर थे। संसाररूप प्राचीन वन के अद्वितीय पारिजात नामक देववृक्ष होते हुए भी पारिजात भिन्न थे विरोध परिहार-आभ्यन्तर बाह्य शत्रुओं से रहित थे, मोक्ष प्राप्त करने योग्य सभी लोगों के नेत्रों को आनन्दित करने वाले होते हुए भी आनन्दरहित थे। विरोध परिहार-नाभि नामक सुकुल के पुत्र थे अर्थात् ऋषभदेव थे। यहाँ आदिजिन की स्तुति में विरोधाभास से अवरोध उत्पन्न होने पर अर्थान्वय होते ही सहृदय-हृदय में अपूर्व आनन्दानुभूति की लहर प्रवाहित होने लगती है और काव्य में विरोधाभासालंकारौचित्य का आधान होता है। कुलौचित्य आचार्य क्षेमेन्द्र कुलौचित्य की परिभाषा करते हुए कहते हैं - जिस प्रकार कुलीनता से पुष्ट औचित्य पुरुष के विशेष उत्कर्ष का जनक होता है, उसी प्रकार कुलमूलक औचित्य काव्य की उत्कृष्टता का कारण तथा सहृदयहृदयाह्लादक होता है। इस प्रकार कुलौचित्य का अर्थ है कुल वर्णन में व्यक्ति विशेष की उत्कृष्टता आदि का वर्णन करना। ___आचार्य क्षेमेन्द्र ने कालिदास के प्रकृत पद्य को कुलौचित्य के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं का वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना कुलौचित्य के रूप में प्रतिपादित किया गया है। महाकवि धनपाल की तिलकमञ्जरी में आचार्य क्षेमेन्द्रोक्त कुलौचित्य का निर्वहण सर्वत्र परिलक्षित होता है। तिलकमञ्जरी के नायक-नायिका प्रशंसित कुलोत्पन्न है। अन्य पात्र भी अपने अपने कार्यों के अनुरूप कुलों से संबंधित हैं। 42. प्रणतसुरमुकुटको टिचुम्बितचरणपरागमपरागं तृणवदुज्झितान्तरायमनन्तराय त्रिभुवन भावनदीपम भवनदीप ससार जीणा र ण्यै क पारिजातम पारिजात सकलभव्यलोकनयनाभिनन्दनं नाभिनन्दनम् ...। ति.म.,पृ. 218 43. कुलोपचितमौचित्यं विशेषोत्कर्षकारणम् ।। काव्यस्य पुरुषस्येव प्रियं प्राय: सचेतसाम् ।। औ. वि. च., का. 28 44. अथ स विषयव्यावृत्तात्मायथा विधि सूनवे नृपतिककुदं दत्त्वा यूने सितापतवारणम्।। मुनिवनतरुच्छायां देव्यातया सह शिश्रिये। गलितवयसामिक्ष्वाकूणामिदं हिकुलव्रतम् ।।वही, पृ. 129
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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