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तिलकमञ्जरी में औचित्य
यहाँ पर मुनि के लिए ग्रहण किए गये अनेक उपमानों की माला द्रष्टव्य है। मुनि जन सर्वदा लोंगों को संसार रूपी दु:ख सागर को सरलता से पार करने के उपाय बताते है। मुनिजनों के सामीप्य से दु:खी लोगों का चित्त शान्त हो जाता है। इसीलिए यहाँ पर मुनि को कल्पवृक्ष, धनकोश तथा कमलवन के समान बताया गया है अत: यहाँ पर अलंकारौचित्य है। रूपक अलङ्कारका एक उदाहरण प्रस्तुत है
सत्यं वृहत्कथाम्भोधेर्बिन्दुमादाय संस्कृता ।
तेनेतरकथाः कन्थाः प्रतिभान्ति तदग्रतः ॥" कवियों द्वारा निबद्ध कथाएँ अवश्य ही वृहत्कथा रूपी समुद्र (अनेक कथानक रूप रत्नों के होने के कारण) से बिन्दु (कथानक) लेकर रची गई हैं क्योंकि वृहत् कथा के समक्ष अन्य कथाएं लबादारूप (अनेक जीर्ण वस्त्रों से युक्त आवरण विशेष) प्रतीत होती है।
यहाँ वृहत्कथा पर समुद्र, बिन्दु पर कथानक तथा कथाओं पर लबादे का आरोप किया गया है, अत: यहाँ रूपकलंकार है। (वृहत्कथा को समुद्र कहा गया है। जिस प्रकार समुद्र मोतियों व रत्नों का भण्डार है। उसी प्रकार वृहत् कथा से लिया गया है। अत: वृहत् कथा की उत्कृष्टता प्रकट करना औचित्यपूर्ण है)।
धनपाल को परिसंख्या तथा विरोधाभास अलङ्कार अत्यधिक प्रिय थे। परिसंख्या अलङ्कार का उदाहरण प्रस्तुत है -
यस्यां च वीथीगृहाणां राजपथातिक्रमः, दोलाक्रीडासु दिगन्तरयात्रा, कुमुदखण्डानां राज्ञा सर्वस्वपहरणम्, अनङ्गमार्गणानां मर्मघट्टनव्यसनम्, वैष्णवानां कृष्णवर्त्मनि प्रवेशः ...पृ.12
जिस नगरी में आपण तथा घर राजमार्ग के दोनों और होने के कारण उनका ही राजमार्गोल्लंघन था न कि लोग शासन पद्धति की अवहेलना करते थे, दोला क्रीडाओं (झूलों) में ही एक दिशा से अन्य दिशा में गमन होता था, न कि राजदण्ड के कारण किसी का दिनिष्कासन होता था, चन्द्रमा के द्वारा ही कुमुदखण्डों की निद्रा का हरण होता था, न कि राजा के द्वारा दण्ड रूप में किसी
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ति.म. भूमिका, पद्य-21