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________________ 134 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य विद्याधर मुनि के वचनों में भी शान्त रस की झलक मिलती है केवलमभूमिर्मुनिजनो विभावानाम्। विषयोपभोगगृध्नवो हि धनान्युपाददते। मद्विधास्तु संन्यस्तसर्वारम्भाः समस्तसङ्गविरता निर्जनारण्यबद्धगृहबुद्धयो भैक्षमात्रभाविसंतोषाः किं तैः करष्यिन्ति। ये च सर्वप्राणिसाधारणमाहारमपि शरीरवृत्तये गृह्णन्ति, शरीरमपि धर्मसाधनमिति धारयन्ति, धर्ममपि मुक्तिकारणमिति बहु मन्यते, मुक्तिमपि निरुत्सुकेन चेतसामिवाञ्छन्ति। .... परार्थसंपादनपमपि धर्मोपदेशदानद्वारेण शास्त्रेषु तेषां समर्थितम् । पृ. 26 समरकेतु हरिवाहन को खोजते हुए अदृष्टपार सरोवर के पास आराम वन में जिनायतन को देखता है। जिनायतन में पूजा करके उसका उद्विग्न चित्त शान्त हो जाता है प्रथमं तावत्पर्यटदनन्तसत्त्वसंघातघोरे संसार इवातिदूरपारेऽस्मिन्महाकान्तारे सारभूतं धर्मतत्त्वमिवानेकभङ्गगम्भीरं सरो दृष्टम्। अथ तदवगाहन कर्मनिर्मली भूतात्मना त्रिविष्टपमिव त्रिदेशोपभोगयोग्यमुन्निद्रकल्पद्रुममालामनोहरमुद्याननमिदं क्रमेण चापवर्गस्थानमिव वर्णनापथोत्तीर्ण माहात्म्यस्वरूपमेतज्जिनायतनम्। अतः परं किमन्यदवलोकनीयम्। पृ. 220 इस प्रकार यह स्पष्ट है कि धनपान ने तिलकमञ्जरी में अङ्गीरस शृङ्गार के साथ अन्य अङ्ग रसों की सफल अभिव्यञ्जना की हैं ये अङ्ग रस वर्णनानुसार व समयानुसार उपस्थित होकर अङ्गी रस को पुष्ट करते हुए कविता कामिनी के सौन्दर्य में असीम वृद्धि करते है।
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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