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तिलकमञ्जरी में रस
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आँखे लाल हो जाना और भृकुटियाँ वक्र हो जाना अनुभाव है। यक्ष का क्रोधावेग व उग्रता व्यभिचारी भाव हैं।
भयानक रस भय जनक परिस्थितियों से ही भयानक रस की अभिव्यञ्जना होती है। भयदायक पदार्थों (सिंहादि) के श्रवण, दर्शन अथवा किसी शक्तिशाली शत्रु के विरोध से भय की अनुभूति होती है। भयानक रस का स्थायी भाव भय है। जिससे भय उत्पन्न हो वह (सिंहादि) 'आलम्बन' तथा उसकी चेष्टाएँ व भयोत्पादक व्यवहार 'उद्दीपन' विभाव होता है। स्वेद, कम्पन, रोमाञ्च, गद्गद भाषण, मूर्छा, चिल्लाना आदि अनुभाव होते हैं तथा शंका, दीनता,मोह, त्रास, ग्लानि, सम्भ्रम, मृत्यु, चिन्ता आदि सञ्चारी भाव होते हैं।
वेताल वर्णन में सहदय का भयानक रस से साक्षात्कार होता है। वेताल ऐसे भीषण रूप में प्रकट होता है कि तत्क्षण ही सहृदय के हृदय में भय का सञ्चार हो जाता है -
अत्रान्तरे नितान्तभीषणों विशेषजनिजस्फातिरास्फालिताशातटै: प्रतिफलद्भिरतिपरिस्फुटैः प्रतिशब्दकैः शब्दमयमिवादधान स्त्रिभुवनमुभ्रान्तनयनतारकाकान्तिसारीकृतदिग्भिराकर्णितः सन् सभयमुभयकर्णदत्तहस्ताभिरायतनदेवताभिः कुलिशताडितकुला चलशिखर समकालनिपतद्गण्डशैलनिवहनादोद्धरो हासध्वनिरुदलसत् । ...दक्षिणेतरविभागे संनिहितमेव देवतायाः, झगिति दत्तदर्शनं निदर्शनमिवाशेषत्रिभुवनभीषणानाम्, अति कृशप्राशु विकरालकर्कशकायम् , .... आशाकरिकु म्भास्थलास्थिस्थूलमतिदूरलुठितमपि रक्तासवकपालमनुभावदर्शितात्यद्भुतभुजायामेन पाणिना वामेन तथैवोर्ध्वस्थितमाददानम्, ...अन्तर्ध्वलितपिङ्गलोग्रतारकेण करालपरिमण्डलाकृतिना नयनयुगलेन यमुनाप्रवाहमिव निदाघदिनकरप्रतिबिम्बगर्भोदरेणावर्तद्वयेनातिभीषणम्, ...अवयवानप्यस्थिसारानतिविकृतरूपदर्शनभयात्पलायितुकामानिव स्नायुग्रन्थिगाढ़नद्धान्दधानम्, आजानुलम्बमानशवशिरोमालमेकं वेतालमद्राक्षीत्। पृ. 46-49
27. (क)यस्मादुत्पद्यते भीतिस्तदत्रालम्बनं मतम् ।
___ चेष्टा घोरतरास्तस्य भवेदुद्दीपनं पुनः ।। सा. द., 3/236 (ख) भारतीय आलोचना शास्त्र ; डॉ. राजवंश सहाय हीरा, पृ. 205