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________________ तिलकमञ्जरी में रस 129 रौद्र रस रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। इसमें शत्रु 'आलम्बन' व उसकी चेष्टाएँ 'उद्दीपन' विभाव होती है। भृकुटी भङ्ग, डाँटना, शस्त्र घुमाना, आवेग, रोमाञ्च, वेपथु, मद आदि अनुभाव होते हैं। मोह, अमर्ष, आक्षेपादि करना व्याभिचारी भाव होते है। रौद्र रस में चित्त का प्रज्ज्वलन होता है। इसमें विद्वेष की भावना अपनी चरम सीमा पर होती है। विद्वेषी अपने प्रतिपक्षी या शत्रु को कथञ्चित समाप्त कर देना चाहता है। तिलकमञ्जरी में कुछ स्थल ऐसे हैं जहाँ पर रौद्र रस अभिव्यञ्जित होता है। ___ वज्रायुध और समरकेतु के युद्ध में रौद्र रस की अभिव्यञ्जना की गई है। समरकेतु को जब यह ज्ञात होता है कि मलयसुन्दरी के पिता कुसुमशेखर वज्रायुध से सन्धि करने के लिए अगले दिन मलयसुन्दरी का पाणिग्रहण वज्रायुध से करवा देंगे, तो वह अत्यधिक क्रोधित हो जाता है और अर्धरात्रि में ही सेना को लेकर वज्रायुध के शिविर की ओर जाकर वायुध को ललकारता है। ललकार को सुनकर सेनापति वज्रायुध क्रोधित हो जाता है सेनाधिपोऽपि तेन व्याहतध्वनिना सद्य एवोद्भिन्नसरसरोमाञ्चकन्दलः कोपविस्फारितपुटेन कवलयन्निव तारकोदरप्रतिबिम्बितं सप्रगल्भचलितपक्ष्मणा यत्र लोचनद्वयेन सतुरङ्गरथमातङ्गपार्थिवं प्रतिपक्षम् 'इतः इतः पश्य माम्' इति व्याहरन्नेव वाहितरथः समेत्य तस्येक्षणपथे समस्थितः । पृ. 89। सेनापति वज्रायुध उसकी ललकार सुनकर रोमाञ्चित हो गया और क्रोध से उसके नेत्र फल गए । निर्भय नेत्रों की कनीनियों के मध्य में प्रतिबिम्बित अश्व, रथ, हाथी व राजाओं सहित शत्रुपक्ष को मानों नेत्रों से ही ग्रास बनाते हुए 'यहाँ, यहाँ, मुझे देखो' ऐसा कहते हुए सेनापति वज्रायुध समरकेतु के सामने आ गया। यहाँ पर समरकेतु आलम्बन विभाव है तथा उसकी ललकार उद्दीपन विभाव है। वज्रायुध का समरकेतु को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दर्पयुक्त उक्ति का प्रयोग करना व नेत्रों का फैलना अनुभाव है। उग्रता व आवेग व्याभिचारी भाव 26. सा. द., 3/228-231
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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