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किसी अन्य माध्यम पर आरोपित नहीं कर सकता । गद्यरचना में कोई त्रुटि आने पर उसी प्रकार दृष्टिगत होती है, जिस प्रकार श्वेत वस्त्र में काला धब्बा। इसी कारण गद्य को कवियों की निकष (कसौटी) कहा गया है। गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति ।
संस्कृत साहित्य के गद्यकारों में अद्य पर्यन्त दण्डी, सुबन्धु, बाणभट्ट, अम्बिकादत्तव्यास आदि कतिपय कवियों की कृत्तियों का ही परिशीलन किया गया है। अभी भी अनेक अन्य कवि ऐसे है जिनकी गद्य कृतियाँ उपेक्षित पड़ी हुई हैं। यदि उन्हें प्रकाश में लाया जाए, तो निश्चित रूप से संस्कृत साहित्य की श्री वृद्धि होगी । महाकवि धनपाल भी ऐसे ही काव्यकार हैं, जिनको साहित्य जगत् में वह सम्मान प्राप्त नहीं हुआ है जिसके वे अधिकारी हैं। धनपाल व्याकरण, दर्शन तथा साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित थे। अपनी काव्य प्रतिभा से ही उन्होंने भोजराज की राजसभा में सर्वोच्च पद को प्राप्त किया था। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश तीनों भाषाओं में काव्य रचनाएँ की है परन्तु काव्य जगत् में उनकी कीर्ति का कारण उनकी मनोहारी तथा रमणीय कृति तिलकमञ्जरी है। 'तिलकमञ्जरी' पुनर्जन्म पर आधारित प्रेम कथा है। इसमें हरिवाहन तथा तिलकमञ्जरी के पवित्र प्रेम का चित्रण किया गया है।
स्नातकोत्तर स्तर पर कादम्बरी कथा के अनुशीलन में आनन्द की प्राप्ति होने के कारण उसी समय किसी गद्य कृति पर कार्य करने की इच्छा जागृत हो गई थी। किसी रमणीय गद्य कृति के अन्वेषण क्रम में मुझे धनपाल की तिलकमञ्जरी के विषय में संस्कृत साहित्य के विभिन्न विद्वानों के मतान्तरों का ज्ञान हुआ। उसी समय मैंने तिलकमञ्जरी पर कार्य करने का निर्णय ले लिया। स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् विभाग के आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद से विद्या वारिधि में तिलकमञ्जरी में अलङ्कारों का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ । तिलकमञ्जरी का एक बार अध्ययन करने के पश्चात् तिलकमञ्जरी की रसमयी कथा का और अध्ययन करने की बौद्धिक बुभुक्षा बढ़ गई। इस विषय में परम आदणीय
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