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________________ कहा, - “सेठजी ! किसी भी तरह की चिंता न करो । कर्म की अनुकूलता होगी तो सब काम पूरे पड़ जायेंगे । धर्म तथा सुकृति के विचार अधिकतर सफल ही होते हैं। हम दोनों एक ही साथ इस संसार के मार्ग से मुक्त होकर, परलोक सुधार के पवित्र मार्ग के अनुगामी होंगे।जैन शासनपति आपकी चिन्ता दूर करे।" राजा नरवर्मा के इन वचनों से सेठ महेश्वरदत्त हृदय में अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसकी विवाह सम्बन्धी भविष्यको चिन्ता कुछ शान्त हो गयी । तत्पश्चात् स्वामी और सेठ दोनों, ऐसी उत्तम भावना भरी बातें करके तथा अपने-अपने कर्तव्य का मार्ग निर्धारित कर अलग हो गये। बीसवाँ परिच्छेद पक्षी का पाण्डित्य महाराजा नरवर्मा अपने राज महल में बैठा हुआ था । राज्य के अधिकारी लोग उसके आगे आ आकर अपने अधिकार - प्रबन्ध का वृतान्त निवेदन करते और नया हुक्म देने की प्रार्थना करते थे । नीति परायण महाराजा, न्याय पूर्वक विचार करके उन राज कर्मचारियों को नई-नई आज्ञाएँ दे रहा था । साथ ही उन्हें, अपनी राजभक्त प्रजा को सब तरह से संतुष्ट रखने की हिदायतें देता था । यद्यपि राजा नरवर्मा अपने जवाई के कहीं चले जाने के कारण अत्यन्त चिन्ताग्रस्त रहता था । तथापि राज्य-कार्य में निश्चित होकर भाग लेता था । प्रजा द्वारा कुछ| भी शिकायत सुनने में आती तो दूसरी सब बातों को एक तरफ रखकर, पहिले वह उस पर ध्यान देता था। राज महल के एक गवाक्ष में से राजा की नजर सामने के चौराहे पर पड़ी । चौराहे पर इकट्ठे हुए लोगों का झुंड भी उसे दिखाई पड़ा । देखते ही उसके हृदय में उस बात को जानने की उत्सुकता उत्पन्न हुई । शीघ्र ही राजा ने सेवक को बुलाकर आज्ञा दी - “इस चौराहे पर इतने लोग क्यों इकट्ठे हुए है ? इस बात का 72
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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