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________________ धनपाल का पाण्डित्य 55 श्रुति शब्द भी दिया गया है। सामवेद के सामस्वरों का उल्लेख आया है। ऋक् साम व यजुः इन्हें त्रयी के नाम से अभिहित किया जाता है। पाद से युक्त छन्दोबद्ध मन्त्रों को ऋक् या ऋचा कहते हैं । इन ऋचाओं के गायन को साम कहते हैं । इन दोनों से पृथक् गद्य-पद्यात्मक वाक्यों को यजुः कहते हैं। सवन अर्थात् सोमरस का उल्लेख आया है। सोमरस की शोभा से युक्त, सामवेद के मन्त्रों के समान, वनावली सहित क्रीड़ा पर्वतों की प्रान्तभूमियां, द्विजों को आनन्दित करती थीं। अग्नि, इन्द्र तथा आदित्य, तीनों लोकों के देवताओं को प्रातः, मध्यान्ह एवं सायंकाल तीन बार सोमरस (सवन) दिया जाता है। चरण तथा शाखा पद का उल्लेख आया है। चरण का अर्थ है शाखाध्येता, अर्थात् जो किसी एक शाखा का अध्ययन करता है। यज्ञ के लिए सप्ततन्तु शब्द का प्रयोग हुआ है। ऋग्वेद में भी यज्ञ के लिए सप्ततन्तु शब्द प्रयुक्त हुमा है। अप्रतिरथ नामक मन्त्रों का उल्लेख किया गया है। समरकेतु के प्रयाण के समय पुरोहित द्वारा अप्रतिरथ मन्त्रों का पाठ किया जा रहा है । अप्रतिरथ ऋग्वेद का सूक्त है। इन्द्र तथा वृत्रासुर के युद्ध का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के इन्द्र सूक्त में इसका वर्णन किया गया है। वरुण का पाश विमोचक के रूप में वर्णन किया गया है। मलयसुन्दरी द्वारा गले में पाश डालकर अशोक वृक्ष से लटककर आत्महत्या करने के प्रसंग में बन्धुसुन्दरी वरुण का आह्वान करती है । 10 1. वही, पृ. 21 2. सवनराजिभिः सामस्वरैरिव क्रीडापर्वतकपरिसररानन्दितद्विजा, -वही, पृ. 11 3. वही, पृ. 11 त्रयीमिव महामुनिसहस्रोपासितचरणाम् ........ -तिलकमंजरी, पृ. 24 5. द्विजातिक्रियाणां शाखोद्धरणम्, -वही, पृ. 15 6. असंख्यगुणशालिनापि सप्ततन्तुख्यातेन ........ -वही, पृ. 13 7. ऋग्वेद 10/52/4, 10/124 8. अप्रतिरथाध्ययनध्वनिमुखरेणपुरःसरपुगेधसा....... ___ -तिलकमंजरी, पृ. 115 9. वही, पृ. 122 10. अतो वरुणो भूत्वा सकरुणः कुरु विपाशाभिमाम् । पाशमोक्षणे तवैव वैचक्ष्यणम्"..." तिलकमंजरी, पृ. 308
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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