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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन 53 (8) नयामृततरंगिणी ग्रन्थ पर तरंगिणीतरणि वृत्ति (9) हरिभद्रसूरि विरचित शास्त्रवार्तासमुच्चय ग्रन्थ पर 25000 प्रमाण श्लोक वृत्ति (10) तिलकमंजरी पर पराग टीका इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि श्री विजयलावण्यसूरि जैन न्याय तथा व्याकरणशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इस अध्याय में तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचन प्रस्तुत किया गया। हमने देखा कि किस प्रकार एक अत्यन्त सरल व सीधे-सादे कथानक को तत्कालीन युग में प्रचलित रूढ़ियों यथा, पुनर्जन्म, देवयोनि एवं मनुष्य योनि के व्यक्तियों का परस्पर मिलना, विद्याधर योनि तथा मनुष्य योनि के व्यक्तियों का समागम, श्राप, दिव्य आभूषण, आकाश में उड़ना, अपहरण आदि के आधार पर अत्यधिक रोचक व नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया गया। इन रूढ़ियों का इस कथानक को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण स्थान है । यद्यपि इस कथा का मूल स्रोत ज्ञात नहीं हो सका, किन्तु धनपाल के "जिनागभोक्ताः" इस संकेत से अनुमान लगाया जा सकता है कि जन आगमों में कही गयी कथाओं में इस कथानक को ग्रहण किया गया है । इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि तिलकमंजरी कथा जैन धर्म व उसके सिद्धान्तों की पृष्टभूमि पर लिखी गयी है।
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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