________________
..
तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
ये शांतिसूरि उत्तराध्ययन सूत्र के टीकाकार थारापद्र गच्छ के शांतिसूरि से भिन्न हैं । थारापद्र गच्छ के शांतिसूरि का जन्म राधनपुर के पास उण नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम धनदेव तथा माता का नाम धनश्री था। इन शांतिसूरि का बाल्यावस्था का नाम भीम था । थारापद्र गच्छ के भी विजयसिंहसूरि से दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् ये शांतिसूरि कहलाये। ये पाटण के राजा भीम की सभा में शांतिसूरी "कवीन्द्र" तथा "वादिचक्रवर्ती" के रूप में प्रसिद्ध थे ! भोज की सभा में 84 वादियों को परास्त कर “वादि वेताल" पद से विभूषित हुए। ये धनपाल के समकालीन थे तथा इन्होंने धनपाल की प्रार्थना पर तिलकमंजरी का संशोधन किया था। धनपाल के समकालीन होने से इनका समय विक्रम की ग्यारहवीं शती है अतः ये पूर्णतल्लगच्छ के शांतिसूरि अर्थात् तिलक. मंजरी के टिप्पणकार से सर्वथा भिन्न हैं।1 विनयलावग्यसूरि (बीसवीं सदी का पूर्वाध)
__ इनका जन्म सौराष्ट्र के बोटाद ग्राम में विक्रम सं० 1953 में हुआ था। इनके पिता का नाम जीवनलाल तथा माता का नाम अमृत था। इन्होंने श्री विजयनेमिसूरि से दीक्षा ग्रहण की थी तथा "मुनि श्री लावण्यविजय" नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। इन्होंने तिलकमंजरी पर 'पराग' नामक विशद व्याख्या लिखी है, जो इस ग्रन्थ को समझने में पूर्णरूप से सहायक है । यह भी तीन भागों में अंशतः प्रकाशित है। श्री पण्यास दक्षविजयगणि ने विजयलावण्यसूरिविरचित निम्नलिखित ग्रन्थों का उल्लेख किया है(1) धातुरत्नाकर, सात भाग, 4 लाख, 50 हजार श्लोक प्रमाण, इनमें
समस्त धातुरूपों की व्युत्पति आदि का विवेचन किया गया है। (2) हेमचन्द्र के शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ वृत्ति 'न्यास' के त्रुटित स्थलों की
2000 श्लोक प्रमाण व्याख्या। (3) हेमचन्द्र के काव्यानुशासन पर वृति (4) तत्वार्थाधिगमसूत्र पर त्रिसूत्रिप्रकाशिका विवृत्ति (5) यशोविजयगणि के नयरहस्य पर "प्रमोद" नामक विवृत्ति (6) सप्तमंगी-नयप्रदीपप्रकरण पर बालावबोधिनी वृत्ति (7) जैनतर्कभाषा पर तत्वबोधिनी टीका
1. मेहता, मोहनलाल, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, पृ० 388-89,.
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी 5, 1967 2. विजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमंदिर, बोटाद, भाग 1, 2, 3, वि. सं. 2008,
2010, 2014 3. वही, भाग 1, भूमिका, पृ० 21-22