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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन धन बाण से प्रभावित थे, यह तिलकमंजरी की प्रस्तावना से स्पष्ट है, किन्तु धनपाल की मौलिक प्रतिभा में कोई संदेह नहीं किया जा सकता । उन्होंने तत्कालीन युग की प्रवृत्ति के अनुकूल होते हुए भी नितान्त भिन्न शैली व भिन्न पृष्ठभूमि में अपने ग्रन्थ को प्रस्तुत किया है । निःसन्देह तिलकमंजरी का गद्यकाव्यों में अपना विशिष्ट स्थान है । तिलकमंजरी ग्यारहवीं शताब्दी में ही अत्यन्त लोकप्रिय हो गयी थी, तथा बाण की कादम्बरी के समकक्ष रखी जाने लगी थी । 2 तिलकमंजरी का कथानक इतना लोकप्रिय हुआ, कि तीन-तीन परवर्ती कवियों ने इस कथानक को सुरक्षित रखने के लिए इसके आधार पर अपने काव्य लिखे | 3 तिलकमंजरीसार ग्रन्थ के अंतिम सात पद्यों में कवि ने अपना परिचय दिया है । " पल्लीपाल धनपाल ने इसकी रचना वि. सं. 1261 अर्थात् ई० स० 1205 में की थी । यह अणहिल्लपुर के निवासी आमन कवि के पुत्र थे । इन्होंने अपने पिता की शिक्षा के अन्तर्गत इस ग्रन्थ की रचना की । इन्होंने अपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में धनपाल को नमस्कार किया है ।" पल्लीपाल धनपाल ने तिलकमंजरी के मूल कथानक को ज्यों का त्यों गद्य से पद्य में उतार लिया है, इसलिए उसमें कुछ नवीनता का समावेश हो गया है । 8 1. तिलक मंजरी - प्रस्तावना, पद्य 26, 27 2. रूद्रट, काव्यालंकार, 1613, नमि साधु की टीका 3. () Velankar, H.D., Jinaratnakosa, Part I B. O. R. I, 1944, p. 159. (ख) कापड़िया, हीरालाल रसिकदास, जैन संस्कृत साहित्य नो इतिहास, भाग 2, पृ० 221 Kansara, N.M., Pallipala Dhanapala's Tilakmanjarisara, Ahmedabad, 1969. 5. तिलकमंजरीसार, पद्य 1-7 6. 4. 7. 8. धनपालोऽल्पतुश्चापि पितुरश्रान्त शिक्षया । सारं तिलकमंजर्याः कथायाः किंचिदग्रथत् ॥ नमः श्रीधनपालाय येन विज्ञानगुम्फिता । कं नालङ्कुरूते कर्णस्थिता तिलकमंजरी ॥ 49 - तिलकमंजरीसार, पद्य 3 - वही, पद्य 5 कथागुम्फः स एवात्र प्रायेणार्थास्त एव हि । किचिन्नवीनमप्यस्ति रसौचित्येन वर्णनम् ॥ वही, पद्य 5
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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