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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन मैंने उन्हें गन्धर्वक के साथ तिलकमंजरी और मलयसुन्दरी के लिए उपहार स्वरूप भेज दिया । दूसरे ही दिन चतुरिका ने आकर सूचना दी कि तिलकमंजरी ने जैसे ही उस हार का आलिंगन किया, आपके साथ समागम की उसकी सम्भावना समाप्त हो गई है, किन्तु उसका जीवन आपके ही अधीन है अतः आपके द्वारा वह विस्मरणीय नहीं है। इस आकस्मिक दुःख के आघात को सहने में असमर्थ मैंने विजयार्घ गिरि के सार्वकामिक प्रपात शिखर से कूदने का निश्चय किया। मार्ग में मैंने एक अतिसुन्दर कन्या को एक नवयुवक के पैरों में गिरकर रोते हुए देखा। पूछने पर उस युवक ने बताया कि वह विद्याधर कुमार अनंगरति है, जो अपने बन्धुजनों द्वारा राज्य के छीन लिए जाने पर, अपने जीवन से विरक्त होकर मरना चाहता है, किन्तु उसकी पत्नी पहले स्वयं मरना चाहती है । मैंने अपना राज्य उसे भेंट में देने का वचन दिया, किन्तु उसने इसे अस्वीकार कर दिया। उसने मुझे दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिये मन्त्र-विद्या प्रदान की, जिससे उसे पुनः अपना ही राज्य प्राप्त हो सके । मैंने इसे स्वीकार कर लिया और छ: महीने तक मन्त्र साधना करते हुए कठोर तपस्या की तथा तपस्या भंग करने के सभी प्रयत्नों को विफल कर दिया । अन्ततः एक देवी प्रकट हुई, जिसने कहा कि तुम अपनी साधना से दिव्य शक्ति प्राप्त करने में सफल हुए हो, अतः तुम्हारे पराक्रम से विजित आठों देवता तुम्हारे अधीन हैं । मैंने उसे अनंगरति की सेवा करने के लिये कहा तब उसने यह रहस्योद्घाटन किया कि वस्तुतः अनंगरति ने प्रधान सचिव शाक्यबुद्धि के कहने पर, विजयागिरि के उत्तरी राज्य के उत्तराधिकारी के लिये उपयुक्त पात्र प्राप्त करने के लिये यह प्रपंच रचा था, क्योकि सम्राट विक्रमबाहु राज्य से विरक्त हो गये थे। अतः तुम विद्याधरचक्रवर्तित्व स्वीकार करो। यह कहकर वह देवी अदृश्य हो गई। ___ उसके जाते ही दिव्य भेरी रव सुनाई दिया, जिसे सुनकर सभी विद्याधर एकत्रित हो गए। वे सभी मुझे विमान में बैठाकर अपनी राजधानी ले गये, जहां विद्याधर चक्रवर्ती के रूप में मेरा अभिषेक किया गया किन्तु में तिलकमंजरी के विरह में व्याकुल, निरन्तर उसी का स्मरण करता रहा । तभी प्रधान द्वारपाल ने गन्धर्वक के आगमन की सूचना दी। गन्धर्वक ने तिलकमंजरी के विषय में विस्तार से वर्णन किया । उसने कहा-आपकी भेजी हुई दिव्य अंगुलीयक को धारण करते ही मलयसुन्दरी के नेत्रों से अश्रूधार बहने लगी। तिलकमंजरी भी दिव्यहार को पहनते ही म्लान पड़ गयी। जब मैंने दिव्य हार प्राप्ति की कथा सुनाई तो वह
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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