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________________ 26 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन तुम्हारा क्या प्रिय करू : अपना अभीष्ट वर मांगो। वेताल के विषय में चिन्ता मत करो, क्योंकि वस्तुतः मेरे प्रतीहारों में अग्रगण्य महोदर नामक यक्ष ने ही तुम्हारे सत्व की परीक्षा करने के लिये अपना मायाजाल दिखाया था। राजा ने अत्यन्त चतुरतापूर्वक मदिरावती के लिये पुत्र की याचना की। उसने कहा-'हे देवि ! वैसा ही करो, जिससे मैं अपने पूर्वजों में अंतिम न रहं तथा मदिरावती भी अद्वितीय वीर-पुत्रों को जन्म देने वाली हमारे पूर्वजों की महारानियों की महिमा का अनुसरण करे । लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर न केवल वर ही प्रदान किया अपितु उसके संकटकाल में रक्षार्थ चन्द्रातप हार और बालातप नामक अंगुलीयक भी उपहार में दी। अगले दिन राजा ने अपनी सभा में समस्त वृतान्त अपने सभासदों से कहा और प्रधान कोषाध्यक्ष महोदधि को बुलाकर उस दिव्य-हार को राज्य-कोश में रखने के लिये सौंप दिया । अंगुलीयक प्रधान सेनापति वज्रायुध के पास, रात्रियुद्ध में पहनने के लिये, उपसेनापति विजयवेग के साथ भिजवा दी। तत्पश्चात् राजा ने मुनिव्रत का त्याग कर दिया और राजकुल में प्रवेश किया, जहां उसके सन्तान-प्राप्ति हेतु विबिध अनुष्ठान किये जा रहे थे । वोर-वनिताओं ने मंगलगान से उसका स्वागत किया । तब ब्राह्मण-सभा में जाकर, वह हस्तिनी पर आरूढ़ होकर राजकुल से बाहर आया और शक्रावतार मंदिर में जाकर पूजा की। मध्याह्न समय तक अपनी नगरी में घूम-घूम कर प्रजाजनों से मिला । पुनः राजभवन में आकर आहार-मंडप में भोजन किया और सूर्यास्त तक दन्तवलमिका में संगीत का आनन्द लेते हुए विश्राम किया। तदनन्तर राजकीयजनों से भेंट करके आस्थान-मंडप में कुछ देर ठहर कर अन्तःपुर में मदिरावती के पास गया। व्रत-धारण करने से कृश मदिरावती के राजा ने स्वयं अपने हाथ से शृंगार किया । रात्रि के अंतिम प्रहर में राजा ने स्वप्न में देखा कि कैलास शिखर पर शुभ्रवस्त्र से सज्जित मदिरावती के स्तनों से ऐरावत दुग्ध-पान कर रहा है, मानो गणेश अपनी सूंड से पार्वती का स्तन-पान कर रहा हो । स्वप्न-दर्शन के अनन्तर कुछ दिनों में ही रानी मदिरावती ने गर्भ धारण किया तथा उचित समय पर अत्यन्त शुभ मुहूर्त में एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। यह समाचार पाते ही अन्तःपुर सहित नगर की सभी स्त्रियां आनन्दमग्न होकर नृत्य करने लगीं। राजा नवजात शिशु को देखने प्रसूति-गृह में गया और उस बालक में चक्रवर्ती के समस्त लक्षणों को देखर अनिर्वचनीय सुख प्राप्त किया । दसवें दिन उसका नामकरण संस्कार कर "हरिवाहन" नाम रख दिया।
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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