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________________ उपसंहार अंत में तिलकमंजरी के उपयुक्त अध्याय से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध की प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित हैं (1) दशम शती के उत्तरार्ध तथा एकादश शती के पूवार्ध के प्रसिद्ध जैन कवि धनपाल ने तिलकमंजरी कथा की रचना करके संस्कृत गद्य कवियों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। इन्होंने सीयक, सिन्धुराज, मुंज तथा भोज की सभा को विभूषित किया तथा 'सरस्वती' विरूद प्राप्त किया । तिलकमंजरी के अतिरिक्त ऋषभपंचाशिका, पाइयलच्छीनाममाला, वीरस्तुति आदि इनकी अन्य रचनाएं हैं । (2) तिलकमंजरी राजकुमार हरिवाहन तथा विद्याधरी तिलकमंजरी की प्रेम-कथा है । धनपाल ने एक अत्यन्त सरल व सीधे-साधे कथानक को तत्कालीन युग प्रचलित रूढ़ियों यथा, पुर्नजन्म, देवयोनि एवं मनुष्य योनि के व्यक्तियों का परस्पर समागम, श्राप, दिव्य आभूषण, आकाश में उड़ना, अपहरण, आत्महत्या आदि के आधार पर विभिन्न कथा - मोड़ों में प्रस्तुत करके अत्यन्त नाटकीय तथा रोचक बना दिया है । ( 3 ) यद्यपि इस कथा का मूल स्रोत ज्ञात नहीं हो सका, तथापि धनपाल के 'जिनागभोक्ता :' इस संकेत से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कथानक जैन आगमों में कही गयी कथाओं से ग्रहण किया गया है । तिलकमंजरी कथा की रचना जैन धर्म व उसके सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि पर की गयी है । (4) तिलकमंजरी के कर्ता धनपाल बहुमुखी प्रज्ञा के घनी कवि थे । यह ग्रन्थ उनके शास्त्रीय ज्ञान तथा व्युत्पत्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है । धनपाल वेद-वेदांग, पौराणिक साहित्य, विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्त तथा धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, गणित, संगीत, चित्रकला सामुद्रिकशास्त्र, साहित्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, नाट्यशास्त्रादि विभिन्न शास्त्रों में पूर्णतः निष्णात थे । (5) तिलकमंजरी की गरणना गद्यकाव्य की कथा तथा आख्यायिका इन दो विद्यानों में से कथा-विद्या के अन्तर्गत होती है । इसका कथानक कवि-कल्पना
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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