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________________ तिलकमंजरी में वणित सामाजिक व धार्मिक स्थिति 245 सार्व-कामिक प्रपात से गिरकर आत्महत्या करने के प्रयास का उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत अध्याय में तिलकमंजरी से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर हमने तत्कालीन सामाजिक व धार्मिक स्थिति का सर्वेक्षण किया। हमने देखा कि तत्कालीन समाज चार वर्णों से सुविभक्त था तथा इस वर्णव्यवस्था की स्थापना व रक्षा राजा स्वयं करता था । चार वर्णो के अतिरिक्त अन्य व्यावसायिक जातियां भी पूर्ण विकसित हो चुकी थीं। वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ आश्रम व्यवस्था का भी पूर्ण रूप से पालन किया जाता था। परिवारों में संयुक्त प्रणाली प्रचलित थी, जो परिवार के छोटे और बड़े सदस्यों में परस्पर सम्मान की भावना पर आधारित थी। स्त्रियों का स्थान बहुत सम्मानजनक था । सम्भ्रान्त परिवारों में स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी। कृषि व व्यापार बहुत उन्नतावस्था में थे। द्वीपान्तरों तक समुद्र से व्यापार होता था। धनपाल स्वयं जैन थे, अतः तिलकमंजरी से जैन धर्म के आचार-विचार तथा सिद्धान्तों की विस्तृत जानकारी मिलती है जैन-धर्म के अतिरिक्त यद्यपि शैव वैष्णवादि धर्मों की स्थिति के भी उल्लेख मिलते हैं, किन्तु प्रमुखतया जैन धर्म के ही सिद्धान्तों का प्रतिपादन इसका उद्देश्य है। 1. तिलकमंजरी, पृ. 418
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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