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________________ तिलकमंजरी में वगित सामाजिक व धार्मिक स्थिति 239 क्रिया-कलापों का विस्तृत विवरण दिया गया है। ऐसे मायनों में मुनि-पत्नियों के अतिरिक्त किसी कारणवश मुनि-व्रत धारण करनेवाली म्याएं भी रहा करती थी। टीका के अनुसार 10,000 मुनियों का पालनपोषण तथा अध्यापन करने वाले ब्रह्मर्षि को कुलपति कहा जाता था। नैष्ठिक मेघवाहनने लक्ष्सी की आराधना करते हुए नैष्ठिक धर्म का पालन किया था ये ब्रह्मचर्य का पालन करते थे तथा अपने व्रत के सूचक चिन्हों को धारण करते थे ये चिन्ह जटा, अजिन, वल्कल, मेखला, दंड, अक्षवलयादि थे इन्हें वर्णी भी कहा जाता था 4 भारवि ने वर्णिलिंगी ब्रह्मचारी वनेचर का उल्लेख किया है। तिलकमंजरी में अजिन, जटादि तापस वेष को धारण कर तपस्या करने वाले विद्याधरों का उल्लेख हैं । । विभिन्न व्रत तथा तप इन सम्प्रदायों के अतिरिक्त वैताढ्य पर्वत की अटवी के प्रसंग में विभिन्न विद्याधरों द्वारा अपने-अपने आचर्यों से उपदिष्ट विविध व्रतों एवं तपों के अनुष्ठान का वर्णन किया गया है, जो तत्कालीन धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डालता है।' ये विद्याधर विभिन्न सिद्धियों की प्राप्ति के लिए वन में तपस्या कर रहे थे, कोई नदी के तट पर निवास कर रहा था, कोई पर्वत की गुफा में कोई लता गृह में तो कोई घास फूस की झोपड़ी बना कर रह रहे थे। इस प्रकार एक-एक धार्मिक, ने 1. वही, पृ. 330-31 2. मुनीनां दशसाहस्र योऽन्नपानादिपोषणात् । अध्यापयति विप्रणिरसो कुलपतिः स्मृतः ।। ___ तिलकमंजरी, पराग टीका भाग 3, पृ. 68 3. प्रपिन्नैष्ठिकोचितक्रियो....... तिलकमंजरी पृ 36 4. अग्रवाल वासुदेवशरण, हर्षचरित्र : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ.107 5. भारवि, किरातार्जुनीयम, 1/1 6. कश्चित्............ विघृताजिनटाकलापस्ता पसाकल्प .......... तिलकमंजरी पृ. 236 वही, पृ. 336 8. वही, पृ. 235-236
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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