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________________ तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति कृषि के अतिरिक्त पशुपालन तत्कालीन समाज का प्रमुख व्यवसाय था । समरकेतु के प्रयाण के प्रसंग में नगर की बाहरी सीमा पर बड़ी-बड़ी गोशालानों का सचित्र वर्णन किया गया है ।1 गोशालाओं में कुत्ते भी पाले जाते थे । जो निरन्तर गोरस के पान से अत्यन्त परिपुष्ट काया से युक्त थे । 2 गोशालाओं का स्वामी घोषाधिय कहलाता था । समरकेतु के स्कन्धावार में बैलों की रोमन्थलीला का एक साथ छोड़ना तथा एक दूसरे को सीगों से मारकर घास चरने का स्वाभाविक वर्णन किया गया है। ग्रामीणजन समरकेतु की सेना के प्रयाण के समय बैलों को देखकर उनके प्रमाण, रूप, बल तथा वृद्धि के अनुसार उनके मूल्य का अनुमान लगा रहे थे । 5 व्यापारः - तिलक मंजरी में ऐसे अनेक उल्लेख आये हैं जिससे तत्कालीन वाणिज्य व्यवस्था का पता चलता है । यह व्यवस्था दो प्रकार की थी- स्थानीय एवं बाहरी बाहरी व्यापार में देश के अन्य भागों के अतिरिक्त द्वीपान्तरों तक व्यापार होता था। इसके लिए समुद्री मार्ग तथा सार्थवाह ये दो साधन थे । स्थानीय व्यापार के लिए बाजारों की व्यवस्था होती थी जिन्हें वीथीगृह तथा विपणि पथ कहा जाता था । ये बाजार प्रायः राजमार्ग पर होते थे तथा इनके दोनों ओर स्वर्ण के बड़े-बड़े प्रासाद निर्मित रहते थे । अयोध्या नगरी की स्वर्णमय प्रासाद पंक्तियों के मध्य हीरे-जवाहरात के विपणि पथ ऐसे लगते थे मानों सुमेरू पर्वत पर सूर्य के रथ के चक्र-चिह्न बने हों । व्यापारी को प्रापणिक कहा जाता था । पण्य विक्रेतव्य वस्तु के लिए प्रयुक्त किया जाता था । मध्याह्न 223 1. तिलकमंजरी, पृ. 117 118 2. वही, पृ. 117 3. वही, पृ. 117 4. समकालशिथिलितरोमन्थलीलं सहेलमुत्थाय चरति सति पुञ्जितमग्रतः प्रयत्न- संगृहीतं यवसमन्योन्यतुण्डता डनरणाद्विषाणे वृषगणे..... 5. प्रमाणरूपबलोपचयशालिनां प्रत्येकमनडुहां मूल्यमानं.... (क) वीथीगृहाणां राजपथातिक्रमः, 6. ( ख ) वही, पृ. 8, 67, 84, 124 7. गिरिशिखरततिनिमशातकुम्भप्रासादमाला.. प्रसाधिता, 8. वही, पृ. 67, 84 9. वही, पृ. 67, 84, 124 -तिलकमंजरी, 124 पृ. वही, पृ. 118 वही, पृ. 12 ...पथुलायतैर्विपणिपर्थः ........... - तिलक मंजरी, पृ. 8
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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