SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 216 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन विवाह . षोडश संस्कारों में विवाह को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यह समस्त गृह्य यज्ञों तथा संस्कारों का उद्गम अथवा केन्द्र है ।। स्मृतियों के अनुसार विवाह के आठ प्रकार माने गये हैं ब्राह्म, देव, अर्ष, प्राजापत्य, असुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पशाच । प्रथम चार प्रकार प्रशस्त माने जाते हैं तथा अंतिम चार अप्रशस्त । प्रथम सर्वोत्तम तथा अंतिम दो वजित किन्तु वैध माने जाते थे। तिलकमंजरी में (1) ब्राह्म (2) गान्धर्व (3) राक्षस तथा (4) स्वयंवर इन चार प्रकार के विवाहों का उल्लेख है । बाह्म विवाह-यह विवाह का शुद्धतम सर्वाधिक विकसित प्रकार माना गया है। इसे ब्राह्म विवाह कहते थे, क्योंकि यह ब्राह्मणों के योग्य समझा जाता था । इसमें पिता विद्वान तथा शीलसम्पन्न वर को स्वयं आमन्त्रित कर तथा उसका विधिवत् सत्कार कर उससे शुल्कादि स्वीकार न कर दक्षिणा के साथ यथाशक्ति वस्त्राभूषणों से अलंकृत कन्या का दान करता था। तिलकमंजरी में समरकेतु तथा मलयसुन्दरी का विवाह इसी कोटि का है । (2) गान्धर्व:-मनु के अनुसार जब कन्या और वर कामुकता के वशीभूत होकर स्वेच्छापूर्वक परस्पर संयोग करते हैं तो विवाह के उस प्रकार को गान्धर्व कहते हैं इच्छाया न्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च । गान्धर्वस्य तु विज्ञेयो मथुन्य: कामसम्भवः ।। हिमालय की तराई में रहने वाले गन्धर्वो में विशेष रूप से प्रचलित होने के कारण इसे गान्धर्व कहा जाता था। तिलकमंजरी में दो प्रसंगों में गान्धर्व विवाह का उल्लेख है। नाविक तारक ने प्रियदर्शना के साथ पाराशर द्वारा योजनगन्धा के सदृश गान्धर्व विवाह किया था। इसी प्रकार कांची नरेश कुसुमशेखर ने गन्धर्वदत्ता के साथ गान्धर्व विधि से विवाह किया था । 1. पांडेय, राजबली, हिन्दू संस्कार, पृ. 195 2. वही, पृ. 203 .. 3. पांडेय, राजबली, हिन्दू संस्कार, पृ.207-8 4. तिलकमंजरी, पृ. 129 5. तामुपयक्य सम्यग्विहितेन विवाहविधिना गान्धर्वेण गर्वोदरः स्वनगरी काँचीमगच्छत् । -वही, पृ. 343
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy