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________________ षष्ठ अध्याय तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति . - सामाजिक स्थिति वर्गाश्रम व्यवस्था वर्णाश्रम व्यस्था प्राचीन भारतीय संस्कृति की रीढ़ थी। भारतीय समाज को वैज्ञानिक तरीके से चार प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया था, तथा औसत मनुष्य जीवन को शतवर्षी मानकर, उसके चार विभाग किये गये थे। तिलकमंजरी से भारतीय समाज तथा जीवन के इस चतुर्मुखी रूप की स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है। राज्य में वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना तथा रक्षा का उत्तरदायित्व राजा का होता था। राज्य में वर्ण, आश्रम तथा धर्म को विधिवत् स्थापित करने के कारण राजा को प्रजापति का उपमान मिला। राज्य में वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना करना राजा का परम कर्त्तव्य था, तथा इसके पश्चात् राजा भी निश्चित हो जाता था। वर्ण व्यवस्था वैदिक काल में ही भारतीय समाज चार वर्षों में विभक्त हो गया था। 1. तिलकमंजरी, पृ. 12, 13, 17 2. यथाविधिव्यवस्थापितवर्णाश्रमधर्मः यथार्थः प्रजापतिः, 3. (क) रक्षिताखिलक्षितितपोवनोऽपि नातचतुराश्रमः (ख) स्वधर्मव्यवस्थापितवर्णाश्रमतया जातनिर्वतिः (ग) राजनीतिरिव यथोचितमवस्थापितवर्णसमुदाया, -वही पृ. 12 -वही, पृ. 13 -वही, पृ. 17 -वही पृ. 166
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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