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________________ तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन वितान तिलकमंजरी में वितान का अनेकधा उल्लेख आया है । मदिरावती के भवन में ऊपर की ओर नेतवस्त्र का वितान खींचा गया था, जिसके किनारों पर मोतियों की मालाएं लटक रही थी । 1 वितानक में लटकती हुई झूलों का उल्लेख किया है । 2 अन्यत्र श्वेत दुकूल वितान का उल्लेख है । 3 चीनाशुक के वितानों का जिनमें मोतियों की लड़ें टांकी गयी थी, उल्लेख किया गया है । अन्यत्व पट्टाशुकवितान का वर्णन भी किया गया है । कादम्बरी में शुद्रक के आस्थानमण्डप के दुकूल वितान के बीच मोतियों के झुग्गे लटकने का उल्लेख है ।" उपधान 171 तिलकमंजरी में गण्डोपवान तथा हंसतुलोपधान नामक विशेष प्रकार के तकियों का उल्लेख है । 7 गण्डोपधान सिर के नीचे एक तरफ रक्खी जाने वाले गोल तकिये को कहते थे । 8 समरकेतु के हस्तदन्तीमय शयन के दोनों भोर दो हंसतुलोपघान रखे गये थे । कढ़े हुए नेत्र वस्त्र से निर्मित गण्डोपधान मेघवाहन के दोनों पार्श्व में लगाये गये थे । 10 बृहत्कल्पसूत्रभाष्य में उपधान, तुलि, आलिगिका, गण्डोपधान तथा मसूरिका नाम के तकियों का वर्णन हैं । 11 आभूषण तिलकमंजरी में शरीर के विभिन्न अंगों पर धारण किये जाने वाले सभी आभूषणों का वर्णन मिलता है, जो तत्कालीन अलंकारशास्त्र की दृष्टि से प्रत्यन्त महत्वपूर्ण है । शिरोभूषणों में मौलि, किरीट, चूड़ारत्न, मुकुट तथा सीमन्तक, कर्णाभूषणों 1. उपरिविस्तारिततारनेत्रपटविताने... अवचूलरत्नमालिकाइव. 2. 3. वही, पृ. 203, 219 4. वही, पृ. 57, 105 5. वही, पृ. 71, 267 - तिलकमंजरी, 71 पृ. वही, पृ. 159 6. स्थूलमुक्ताकलाप - कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन पृ. 28 7. तिलकमंजरी, पृ. 70, 276 8. मोतीचन्द्र, प्राचीन भारतीय वेषभूषा, पृ. 168 9. तिलकमंजरी, उमयतः स्थापितमृदुस्थूलहंसतुलोपधाने, पृ. 276 10. उभयापार्श्व विन्यस्तचित्र सूत्रित नेत्रमण्डोपधानम्....... तिलकमंजरी, पृ. 70 11. बृहत्कल्पसूत्रभाष्य, 4, 24, 38
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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