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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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चण्डातक
यह जांघों तक पहुंचने वाला अधोवस्त्र था जिसे स्त्री तथा पुरुष दोनों पहनते थे । तिलकमंजरी में चण्डातक का एक बार ही उल्लेख हुआ है । तिलकमंजरी-प्रासाद के वर्णन में क्रीडाशैल की गुहा में निवास करने वाले शबरमिथुनों के कल्पवृक्ष की छाल से निर्मित चण्डातकों का उल्लेख है। कोपीन
एक मात्र कौपीन धारण करने वाले मछुओं का उल्लेख किया गया है । कौपीन एक प्रकार की छोटी चादर थी, जो प्रायः साधु लोग पहनने के काम में लेते थे। उष्णीव - यह पगड़ीनुमा शिरोवस्त्र था। गन्धर्वक ने पट्टाशुक वस्त्र का उष्णीष धारण किया था। हरिवाहन के साथ जाने वाले राजपुत्रों ने उष्णीष पट्टों के शिरोवेष्टन बांधे थे । वैताढ्यपर्वत को जम्बूद्वीप का उष्णीषपट्ट कहा गया है । परिधान __ परिधान नाभि से नीचे पहने जाने वाले अधोवस्त्र के लिए प्रयुक्त हुआ है ।' गृहोपयोगी वस्त्र
इन वस्त्रों के अतिरिक्त तिलकमंजरी में कन्या' प्रावरण, उत्तरच्छदपट, प्रसेविका, विस्तारिका, उपधान तथा वितानादि गृहोपयोगी वस्त्रों का भी उल्लेख है। कन्या
तिलकमंजरी में कन्या का दो बार उल्लेख किया गया है। गरीब लोग
1. मोतीचन्द्र-भारतीय वेशभूषा, पृ. 23 2. क्रीड़ाद्रिकन्दराशबरमिथुनानामखन्डानि कल्पतरुचीरचण्डातकानि,
तिलकमंजरी, पृ. 372 3. कौपीनमात्रकर्पटावरणेष्वतरूणलुण्ठिततिमिर...""जालिकेषु,
-वही प. 151 4. पट्टाशुकोष्णीषिणा.........
-वही पृ 165 5. उष्णीषपट्टकृतशिरोवेष्टना....... -वही पृ. 232 6. उष्णीषट्टमिव जम्बूद्वीपस्य, -वही पृ. 239 7. तिलकमंजरी, पृ. 36, 209, 265 8. वही, पृ. 3, 139