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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
कंबुक पहना था, जिसके अग्रपल्लव के बार-बार उड़ने से उसका नाभिमंडल दिखायी दे जाता था । टीकाकार ने कचुक का अर्थ चोलक दिया है । वृद्ध अन्तवंशिकों ने पैरों तक लटकते हुए चीन कंचुक धारण किये थे। एक अन्य प्रसंग में हरिवाहन के साथी राजपुत्रों द्वारा कंचुक पहनने का उल्लेख है । .
. धनपाल ने कंचुक का चोली अर्थ में भी प्रयोग किया है। कंचुकावृत होने पर भी मलयसुन्दरी ने अपने वक्षःस्थल को पूर्ण रूप से आवृत करने के लिए अपने उत्तरीय से गात्रिकाबन्ध ग्रन्थि लगायी। प्रन्यत्र भी मलयसुन्दरी घृत नेत्र वस्त्र के कंचुक का उल्लेख किया गया है ।
सिक ... .
'तिलकमंजरी में कूसिक का एक बार ही उल्लेख है । गन्धर्वक ने पाटलपुष्प के समान पाटल वर्ण का झीना तथा स्वच्छ नेत्र वस्त्र से निर्मित कूर्पासक पहना था। कूसिक कमर से ऊंचा तथा आधी आस्तीन का कोटनुमा वस्त्र था, जिसे स्त्री तथा पुरुष दोनों पहनते थे। हर्षचरित में राजावों की वे भूषा के वर्णन में कूर्पासक का उल्लेख आया है।
तिलकमंजरी में वारबाण के लिए तनुच्छद शब्द का प्रयोग हुआ है । तनुच्छद का उल्लेख केवल एक बार ही पाया है। वारबाण भी कंचुक के समान ही पहनावा था, किन्तु यह कंचुक से भी लम्बा होता था । प्रायः यह युद्ध में पहना जाता था। यह विदेशी वेशभूषा थी जो सासानी ईरान से भारत में आयी थी। बाणभट्ट ने भी वारबाण का उल्लेख किया है।10
1. आच्छादितोदखलित्रयस्य हसितहारीतपक्षीहरिनिम्नः कंचुकारपल्लवस्य चंचलतया............
-वही, पृ. 160 2. आप्रपदीनचीन कंचुकावच्छन्नवपुषा........
-वही, पृ० 153 3. हढाकृष्टकंचुककशाधिककृशोदरश्रियः........ - वही, पृ० 232 4. निविशितमशिथिल कंचुकावृत्तस्य कुचमण्डलस्योपरिविधाय चिरमुत्तरीयेण ...
. -तिलकमंजरी, पृ० 306 5. चटुलनेत कंचुकाग्रपल्लव प्रकाशितनामिदेशायाः.... -वही, पृ० 279 6. सूक्ष्मविमलेन पाटलाकुसुम . ....नेत्रकूसकेन, -वही, पृ. 164 7. अग्रवाल, वासुदेवशरण; हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्यय, पृ० 155 8. नानाकषायकर्बुरे : कूसिके : ........ बाणभट्ट, हर्षचरित, पृ0 206 .9 कश्चिदुल्लासिताभिनवतनुच्छदै : ........ तिलकमंजरी, पृ० 303 10. अग्रवाल, वासुदेवशरण; हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 153,54