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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन यद्यपि इस कथा को प्रमाणित करने वाला अन्य कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसमें निहित कुछ तथ्य हमें प्राप्त होते हैं (1) धनपाल की पुत्री अत्यन्त विदुषी थी, उसकी स्मरण शक्ति बहुत तीव्र थी। (2) धनपाल अत्यन्त स्वाभिमानी थे व चाटुकारिता से दूर रहते थे। (3) धनपाल धारा नगरी छोड़कर कुछ समय सत्यपुर नगर में रहे । धनपाल ने सत्यपुर के महावीर की स्तुति में अपभ्रंश भाषा में 30 पद्यों की रचना की है । इस रचना से भी इसकी पुष्टि होती है। धनपाल ने भोज की सभा में कौल कवि धर्म के साथ वाद-विवाद कर उसे पराजित किया था। श्री मुंज ने धनपाल को अपनी सभा में 'कूर्चाल सरस्वती' बिरुद प्रदान किया था । धनपाल की तिलकमंजरी से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है । धनपाल ने तिलकमंजरी की रचना करके अणहिल्लपुर के श्री शान्तिसूरि से भेंट की तथा जैन धर्म की दृष्टि से कोई दोष नहीं रह गया हो, इस प्रकार उसका संशोधन करवाया। धनपाल श्वेताम्बर जैन थे। तिलकमंजरी की भूमिका में धनपाल ने सभी श्वेताम्बर जैन कवियों को नमस्कार किया है । प्रभावकचरित के अनुसार धनपाल ने अपने धन का सात क्षेत्रों में वितरण किया, जिनमें सर्वप्रथम चैत्यनिर्माण था। उसने नामिसुनू अर्थात् ऋषभदेव का चैत्य बनवाया तथा उसमें 1. जैन-साहित्य-संशोधक, खण्ड 3, अंक 3 2. प्रभावकचरित, पृ. 146-149 3. पुरा ज्यायान्महाराजस्त्वामुत्संगोपवेशितम् । प्राहेति बिरुदं तेऽस्तु श्री कूर्चालसरस्वती ।। 271।। -वही, पृ 148 4. ""श्रीमुंजेन सरस्वतीति सदसि क्षोणीमृता व्याहृतः ।। -तिलकमंजरी-पद्य 53 5. अथासौ गूर्जराधीश कोविदेशशिरोमणिः । . वादिवेतालविशंद श्रीशान्त्याचार्यमाह्वयत् ।। 201॥ अशोधयदिमां चासावुत्सूत्रादिप्ररूपणात् । शब्दसाहित्यदोषास्तु सिद्धसारस्कोषुकिम् ।। 202।। -प्रभावकचरित, पृ. 145 6. तिलकमंजरी, पद्य 24, 32, 34..
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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