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________________ पंचम अध्याय तिलकमंजरी का सांस्कृतिक अध्ययन मनोरंजन के साधन धनपाल के समय में साहित्य एवं कला अपने चर्मोत्कर्ष पर थे । तत्कालीन राजा कविता कामिनी के उपासक और रक्षक दोंनों ही थे । स्वयं राजा भी साहित्य सृजन करते एर्ब अन्य कवियों की कृतियों को भी पूरे मनोयोग से ग्रहण कर | अपनी रचनाओं द्वारा राजा का मनोरंजन करना कवि का प्रमुख उद्देश्य था । स्वयं धनपाल ने तिलकमंजरी की भूमिका में लिखा है कि उसने इस कथा की रचना जैन आगमों में कथित कथाओं के श्रवण को उत्सुक भोज के विनोद हेतु की थी। 1 अत: उस समय राजकीय मनोरंजन के प्रमुख साधन साहित्य तथा कलाविषयक थे अर्थात् वे मनोरंजन की अपेक्षा मस्तिष्क रंजन में अधिक रूचि लेते थे । राजकुमार हरिवाहन व समरकेतु के प्रसंग में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है - वे दोनों मित्र परस्पर अपनी अस्त्र कुशलता का प्रदर्शन करते, कभी पद - वाक्य का विवेचन करते, कभी प्रमाण व प्रमेय के स्वरूप का विचार करते, कभी धर्मशास्त्र के विषयों का समर्थन करते, कभी असत् दर्शन की युक्तियों का खण्डन करते, कभी नीतिशास्त्र के विषयों का अध्ययन करते, कभी कला-सम्बन्धी विषयों पर वाद-विवाद करते, कभी रस, अभिनय, भावादि का वर्णन करते, कभी वेणु, वीणा, मृदंगादि वाद्यों का वादन करते तथा कभी प्राचीन कवियों की रचनाओं के अनुशीलन में अपना समय व्यतीत करते थे । 2 इस प्रकार के मनोरंजन के लिए प्रायः गोष्ठियां आयोजित की जाती थी जो प्रायः या तो राज दरबार में ही हुआ करती अथवा नगर से दूर कहीं वन या किसी रमणीक उद्यान में की जाती थी । इस प्रकार की अनेक गोष्ठियों का 1. तिलकमंजरी, पृ. 7, पद्य 50 2. वही, पृ. 104 3. तिलकमंजरी, पृ. 61, 108, 172, 184, 372
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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