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________________ 130 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन इसमें शब्दतः निषेध होने से यह अप्रश्नपूर्वक वाच्यव्यवच्छेद्य परिसंख्या का उदा रण है। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण मेघवाहन के वर्णन में मिलते हैं।' (2) विद्याधर मुनि की मदिरावती के प्रति इस उक्ति में भी इसी भेद की झलक मिलती है - 'आत्मा निवारणीयो धृत्या न वृत्या, स्वभावस्निग्धोपसपणीयो दृष्टया न काययष्टया, संभाषयितव्यो मनसा न वचसा कारयितव्यः कण्ट किनि पत्रच्छेद विरचनं देववतार्चनकेतकदले न कपोलतले -पृ. 31-32 (3) अप्रश्नपूर्वकप्रतीयव्यवच्छेद्य-तिलकमंजरी में प्रतीयव्यवच्छेद्य परि. संस्था के भी अनेक प्रयोग मिलते हैं। अयोध्या के प्रसंग में कहा गया है-जिस नगरी में वीथीगृह राजमार्ग का अतिक्रमण करते थे (न कि लोग राजाज्ञा का उल्लंघन करते, दोलाक्रीड़ाओं में में दिशान्तर यात्रा होती (न कि किसी को देश निकाला दिया जाता), चन्द्रमा कुमुद वनों का सर्वस्व (निद्रा) हरण कर लेता (न कि किसी व्यक्ति का सब कुछ हर लिया जाता), कामदेव के बाण ही मर्मछेदन का कार्य करते (न कि किसी व्यक्ति का गला घोंटा जाता।, वैष्णव ही कृष्ण की आचार पद्धति का पालन करते (न कि कोई व्यक्ति दुराचारी होता था)। इसी प्रकार मेघवाहन के लिए कहा गया है - यस्मिंश्च राजन्यनुवतितशास्त्रमार्गे प्रशासति वसुमती धातूनां सोपसर्गत्वम्, इथूणां पीडनम्, पक्षिणां दिव्यग्रहणम्, पदानां विग्रह, तिमीनां गल ग्रहं, गूढचतुर्थकानां पादाकृष्टयः कुक 1. (अ) उच्चापशब्दः शत्रुसंहारे न वस्तुविचारे, वृद्धत्यागशीलो विवेकेन न प्रज्ञोत्सेकेन......."अकृतकारूण्यः करचरणे न धरणे। __-तिलकमंजरी, पृ. 13 (ब) कुशाग्रीयबुद्धिः कार्याणां वेषम्येण जहर्ष न समतया......"सकलाधर्म निर्मूलनाभिलाषी कलेखतारस्योदकण्ठत् न कृतयुगस्य - पृ. 14 (स) यस्य च प्रताप एव वसुधामसः धयत्परिकर एव सैन्यनायका :.."त्याग एव दिक्षु कीर्तिमगमयद्विभवो बन्दिपुत्राः। पृ. 15 2, (अ) यस्यां च बीथीगृहाणां राजपथातिक्रमः, दोलाक्रीडासु दिगन्तरयात्रा, कुमुदखण्डानां राज्ञा सर्वस्वापहरणमनंगमार्गणांनां मर्मघट्टनव्यसनं, वैष्णवानां कृष्णवर्त्मनि प्रवेशः, सूर्योपलानां मित्रोदयेन ज्वलनम्, वैशेषिकमते द्रव्यस्य कूटस्थनित्यता। - वही, पृ. 12 (ब) थत्र च भोगस्पृहया दानप्रवृत्तयः .. .."विनयाधानाय वृद्धोपास्तयः पुसांभासन् -तिलकमंजरी, पृ. 12
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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