________________
114
तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
__
-पृ. 222
इसी प्रकार के एक अप्रसिद्ध उपमान का अन्य उदाहरण प्रस्तुत है'यह सूर्य धीवर के समान तारों रूपी मछलियों के समूह से युक्त आकाश रूपी ताधलाब से अंधकार रूपी जाल को किरणों के हाथों से खींच रहा है ।1 इसमें रुपक से संसृष्ट उपमा है। पौराणिक उपमान
___धनपाल प्रायः रामायण, महाभारत तथा पौराणिक कथाओं से उपमान ग्रहण करते हैं, इसी प्रकार की कुछ उपमाओं के उदाहरण प्रस्तुत हैं(1) पार्थवत् पृथिव्यामेकधन्वी समरकेतुर्नाम ।
-पृ. 95 (2) त्रिविक्रमपिव पादापनिर्गतत्रिपथगासिन्धुप्रवाहम्, -पृ. 240 (3) सुग्रीवसेनामिव स्फुरत्तारनीलांगदाम्,
-पृ. 55 (4) जामदग्न्यमार्गणाहतक्रौंचाद्रिच्छिद्ररिव उद्घान्तराजहंसः, -पृ. 8 (5) मौमित्रिचरितमिव विस्तारितोमिलास्यशोभम्, -पृ. 204 (6) कचित्सुग्रीवमिव कपिशतान्वितम्, (7) अजातशत्रुणासत्यव्रताधिष्ठितेन कृष्णद्वैपायनमिव युधिष्ठिरेण""
-पृ. 24 (8) अम्बिकायौवनोदयमिव वशीकृत विशमाक्षचित्तम्, -- पृ. 24 (9) वृत्रभिवोपकण्ठलग्नवज्रानुविद्धफेनच्छटा............ -पृ. 122
(10) शाक्यशिष्ययोरिवानुपजातविप्रयोगदुःखयोः, -पृ. 104 दार्शनिक उपमान
इसी प्रकार तिलकमंजरी में दार्शनिक साहित्य से भी उपमान चुने गये हैं । यथा-(1) बौद्ध इव सर्वतः शून्यदर्शी,
-पृ. 28 (2) सत्तकविद्यामिव विधिनिरूपितानवप्रघमाणाम्, -पृ. 24
धनपाल प्राय: अपने पात्रों की तुलना देवी-देवताओं से करते हैं । हरिवाहन की इन्द्र से समता प्रदर्शित की गयी है-'अच्छकान्तिरत्नदर्पणप्रतिबिम्बितैः प्रीतिनिश्चलचक्षुषो जनस्य सर्वतः सहनसंख्यविलोचनैः शवलितगात्रयष्टिः ऐरावताधिष्टः सहस्राक्षा इव साक्षादुपलक्ष्यमाणः (105)। इसी प्रकार मेघवाहन की शिव से तुलना की गई है --'कदाचिन्मुदितसुहृद्गणोपदिश्यमानमार्गोमृगांकमौलिरिव कैलासशिखरे वभ्राम' पृ. 17 ।
धनपाल प्रायः एक ही उपमा का प्रयोग न करके अनेक उपमाओं की शृंखला एक साथ उपस्थित करते हैं । यथा-करेणुराज इव विलोलयन कमलिनीखण्डानि, पम्रिरिवाजिप्रत् सहलवलकमलामोवम्, इन्दुरिव मोचवन्
1. अन्तविस्फुरितोरुतारकति मिस्तो नभ: पल्क्ला
बान्तानायमयं च धीवर इवानूरू: करैः कर्षति ।।
-वहीं, पृ. 238